Jump to content
सोशल मीडिया / गुरु प्रभावना धर्म प्रभावना कार्यकर्ताओं से विशेष निवेदन ×
नंदीश्वर भक्ति प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय - 3 सूर्योदय दोहावली

       (0 reviews)

    1. सीधे सीझे शीत हैं, शरीर बिन जीवन्त। 

    सिद्धों को मम नमन हो, सिद्ध बनँ श्रीमन्त।।1।।

     

    शब्दार्थ -

    1.  सीझे - प्राप्त कर लिया
    2.  जीवन्त - चैतन्य स्वरूप 
    3.  मम - मेरा
    4.  सीधे - सरल, ऋजु

     

    अर्थ - सिद्ध भगवान जिन्होंने ऋजुगति से मोक्ष को प्राप्त किया है, जो अशरीरी चैतन्यस्वरूप हैं, उन्हें मैं मन वचन काय की शुद्धिपूर्वक श्री सम्पन्न-अनन्त सुख का भोक्ता बनने हेतुनमन करता हूँ ।।1।।

     

    2. वचन–सिद्धि हो नियम से, वचन-शुद्धि पल जाये।

    ऋद्धि-सिद्धि परसिद्धियाँ, अनायास फल जायें।।2।।

     

    शब्दार्थ - 

    1.  ऋद्धि - हर तरह की सम्पन्नता या वैभव
    2.  सिद्धि - अलौकिक शक्तियाँ 
    3.  पर सिद्धियाँ - अन्य सिद्धियाँ
    4.  अनायास - बिना प्रयत्न के, स्वतः

     

    अर्थ -  वचन की सिद्धि हो जाने पर वचन की शुद्धि नियम से पल जाती है और फिर ऋद्धि-सिद्धि और अन्य सिद्धियाँ भी बिना प्रयास के फलने लगती हैं ।।2।।

     

    3. प्रभु दिखते तब और ना, और समय संसार।

    रवि दिखता तो एक ही, चन्द्र साथ परिवार।। 3।।

     

    शब्दार्थ -

    1.  प्रभु - भगवान
    2.  रवि - सूर्य

     

    अर्थ - भक्त को जब भगवान दिखते हैं तो और कुछ नहीं दिखता। जब और कुछ दिखता है तो संसार दिखता है। जैसे सूर्य नजर आता है तो और कुछ नजर नहीं आता लेकिन जब चन्द्रमा दिखता है तो उसके साथ उसका सारा परिवार नजर आता है।।3।।

     

    4. भाँति-भाँति की भ्रान्तियाँ, तरह-तरह की चाल ।

    नाना नारद नीतियाँ, ले जाती पाताल ||4||

     

    शब्दार्थ -

    1.  भाँति-भाँति - विभिन्न प्रकार
    2.  भ्रान्तियाँ - अनेक प्रकार के भ्रम या सन्देह |
    3.  पाताल - नरक
    4.  नीतियाँ - तरकीब

     

    अर्थ - विभिन्न प्रकार की भ्रान्तियाँ, तरह-तरह की चालें और नारद नीतियाँ व्यक्ति को नरक में ले जाती हैं ।।4।।

     

    5. मानी में क्षमता कहाँ, मिला सके गुणमेल ।।

    पानी में क्षमता कहाँ, मिला सके घृत तेल ।।5।।

    शब्दार्थ -

    1.  मानी - अहंकारी
    2.  क्षमता - सामर्थ्य
    3.  घृत   - घी

     

    अर्थ -अहंकारी में इतनी क्षमता नहीं होती कि वह गुणों को पा सके। पानी में क्षमता नहीं होती कि वह घी और तेल को मिला सके ||5||

     

    6. स्वर्गों में ना भेजते, पटके ना पाताल।

    हम तुम सबको जानते, प्रभु तो जाननहार||6||

     

    शब्दार्थ-

    1. - जाननहार - केवलज्ञानी

     

    अर्थ - भगवान न किसी को स्वर्ग भेजते हैं न ही नरक में पटकते हैं। वे हम सबको मात्र जानने वाले केवलज्ञानी हैं ।। 6 ।। 

     

    7. चमक दमक की ओर तू, मत जा नयना मान।

    दुर्लभ जिनवर रूप का, निशिदिन करता पान।।7।।

     

    शब्दार्थ -

    1. नयना - आँखें
    2.  निशि दिन - रात-दिन
    3.  दुर्लभ - कठिनता से प्राप्त होने वाला 

     

    अर्थ -  हे नयनों! तुम चमक दमक की ओर मत जाओ। मेरी इस बात को मान जाओ। तुम जिनेन्द्र देव के दुर्लभ रूप का रात-दिन पान करो।।7।।

     

    8. चिन्तन से चिन्ता मिटे, मिटे मनो मल मार।

    प्रसाद मानस में भरे, उभरें भले विचार ||8||

    शब्दार्थ -

    1.  मल - मलिनता
    2.  प्रसाद - प्रसन्नता, कृपा
    3.  मानस - मन
    4.  भले विचार - उत्तम विचार

     

    अर्थ - चिन्तन करने से चिन्ता नष्ट हो जाती है और मन की मलिनता नष्ट हो जाती है। मन कृपा से भर जाता है और सदा उत्तम विचारों को जन्म देता है ।।8।।

     

    9. रही सम्पदा आपदा, प्रभु से हमें बचाय।

    रही आपदा सम्पदा, प्रभु में हमें रचाय ।।9।।

     

    शब्दार्थ -

    1.  सम्पता - सम्पत्ति
    2.  आपदा - आपत्ति
    3.  बचाय - बचाती है अर्थात् दूर ले जाती है
    4.  रचाय - मिलाती है।

     

    अर्थ - वह सम्पदा जो प्रभु से दूर ले जाती है, वह सम्पदा नहीं, आपदा है और वह आपदा जो प्रभु से मिलाती है, वह आपदा नहीं, सम्पदा है।।9।। 

     

    10. कटुक मधुर गुरु वचन भी, भविक चित्त हुलसाय।।

    तरुण अरुण की किरण भी, सहज कमल विकसाय ||10||

     

    शब्दार्थ -

    1. कटुक - कड़वा
    2.  मधुर - मीठा
    3.  भविक - भव्य जीव
    4.  चित्त - मन
    5.  हुलसाय   - हर्षित कर देता है
    6.  तरुण - जवान
    7.  अरुण - सूर्य
    8. विकसाय - विकसित कर देती है।

     

    अर्थ -  गुरु के वचन कटुक हों अथवा मधुर, भव्य जीवों के चित्त को हर्षित कर देते हैं। उसी तरह जैसे तरुण सूर्य की किरणें भी सहज ही कमल को विकसित कर देती हैं ।।10।।

     

    11. वेग बढ़े इस बुद्धि में, नहीं बढ़े आवेग।

    कष्टदायिनी बुद्धि है, जिसमें ना संवेग ।। 11 ।।

     

    शब्दार्थ -

    1.  वेग - तीव्रता, प्रचण्डता, प्रवाह
    2.  आवेग - जोश, बिना सोचे-समझे कर बैठने की अंतः प्रेरणा
    3.  कष्टदायिनी - पीड़ा देने वाली
    4.  संवेग - मनोवेग, अतिरेक

     

    अर्थ -  बुद्धि में तीव्रता आये लेकिन आवेग नहीं । बुद्धि कष्टदायिनी हो जाती है, जब उसमें संवेग नहीं होता ।।11।।

     

    12. शास्त्र पठन ना गुणन से, निज में हम खो जाय।

    कटि पर ना पर अंक में, माँ के शिशु सो जाय ||12 ||

     

    शब्दार्थ -

    1.  निज - अपना
    2.  कटि - कमर
    3. अंक - गोद
    4.  पठन - पढ़ना
    5.  गुणन - आचरण से

     

    अर्थ -  शास्त्र पढ़ने से नहीं अपितु गुणने से आत्मा में लीन होना सम्भव है। माँ की कमर पर नहीं अपितु गोद में आते ही शिशु सो जाते हैं।।12।।

     

    13. सुधी पहनता वस्त्र को, दोष छुपाने भ्रात।

    किन्तु पहन यदि मद करे, लज्जा की है बात ||13||

     

    शब्दार्थ -

    1. सुधी - बुद्धिमान
    2.  भ्रात - भाई
    3.  मद - घमण्ड
    4.  लज्जा - शर्म

     

    अर्थ -  हे भाई! बुद्धिमान मनुष्य दोष छुपाने के लिए वस्त्र धारण करता है किन्तु यदि वस्त्र पहनकर रूप का मद करने लगता है तो यह लज्जा की बात है।।13।।

     

    14. आगम का संगम हुआ, महापुण्य का योग।

    आगम का हृदयंगम तभी, निश्छल हो उपयोग।।14।।

     

    शब्दार्थ -

    1.  आगम - प्रवचन/जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहे गए समस्त पदार्थों को प्रकाशित करने वाले वचन को आगम कहते हैं।
    2.  संगम - मेल, मिलना, संयोग
    3.  हृदयंगम - मन में उतरना
    4.  निश्छल - छल रहित
    5.  उपयोग - जीव का जो भाव वस्तु के ग्रहण करने के लिए प्रवृत्त होता है।

     

    अर्थ - आगम पढ़ने या सुनने को मिलना यह महान पुण्य का योग है और जिसने आगम को हृदयंगम कर लिया उसका उपयोग निश्छल हो जाता है।14।।

     

    15. विवेक हो ये एक से, जीते जीव अनेक।

    अनेक दीपक जल रहे, प्रकाश देखो एक।।15।।

     

    शब्दार्थ -

    1.  विवेक - भले-बुरे का ज्ञान, सत्यज्ञान

     

    अर्थ -ये जो अनेक जीव जी रहे हैं ये सभी एक समान है, इस तरह का विवेक सभी को होना चाहिए। जिस तरह दीपक अनेक जलते हैं लेकिन प्रकाश एक ही होता है।।15।।

     

    16. खण्डन–मण्डन में लगा, निज का ना ले स्वाद।

    फूल महकता नीम का, किन्तु कटुक हो स्वाद ।।16।।

     

    शब्दार्थ -

    1.  खण्डन - गलत ठहराना
    2.  मण्डन - अपने पक्ष का प्रतिपादन  
    3.  कटुक - कड़वा
    4.  महकता - सुगन्धित होता हुआ

     

    अर्थ - जो खण्डन–मण्डन में लगा रहता है वह निज का स्वाद कभी भी नहीं ले पाता। जैसे फूल सुगन्धित होते हुए भी नीम स्वयं में कड़वा होता है ।।16।।

     

    17. नीरनीर को छोड़कर, क्षीर-क्षीर का पान। 

    हंसा करता भविक भी, गुण लेता गुणगान ||17 ||

     

    शब्दार्थ -

    1. नीर - पानी
    2. क्षीर - गुरु
    3.  भविक - भव्य जीव

     

    अर्थ - जिस तरह हंस नीर को पृथक् करके दूध का पान कर लेता है उसी प्रकार भव्य जीव भी गुणों को ग्रहण कर गुणगान करना जानता है।।17।। 

     

    18. चिन्तन मन्थन मनन जो, आगम के अनुसार।

    तथा निरन्तर मौन भी, समता बिन निस्सार ||18 ||

     

    शब्दार्थ -

    1.  चिन्तन - मन ही मन में किया जाने वाला। विवेचन या विचार
    2.  मनन  - विचार करना
    3.  मन्थन  - गूढ़ तत्त्व की छानबीन
    4.  समता - साम्य, समभाव रखना
    5.  निस्सार - निरर्थक, सारहीन

     

    अर्थ - यदि समता का अभाव है तो आगम के अनुसार चिन्तन, मन्थन और मनन करना तथा निरन्तर मौन साधना करना भी निरर्थक है ।।18।।

     

    19. पके पत्र फल डाल पर, टिक ना सकते देर।

    मुमुक्षु क्यों ना निकलता, घर से देर सबेर ||19।।

     

    शब्दार्थ -

    1.  पत्र - पत्ता
    2.  मुमुक्षु - मोक्ष की इच्छा रखने वाला

     

    अर्थ - पके फल और पत्ते अधिक समय तक डाल पर नहीं टिकते, गिर ही जाते हैं। फिर मोक्ष का अभिलाषी इस बात के मर्म को समझते हुए देर से ही सही कुछ समय बाद घर त्याग क्यों नहीं कर देता ।।19।।

     

    20. तव-मम तव-मम कब मिटे, तरतमता का नाश।

    अन्धकार गहरा रहा, सूर्योदय ना पास।। 20 ।।

     

    शब्दार्थ -

    1.  तव - तेरा
    2.  मम - मेरा
    3. तरतमता - अच्छे बुरे का भेद

     

    अर्थ - तेरा-मेरा, तेरा-मेरा कब समाप्त होगा और कब मैं अच्छे-बुरे का भेद समाप्त कर पाऊँगा। क्योंकि अंधकार बहुत गहरा है। सूर्योदय भी बहुत दूर है ।। 20।।


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...