भुक्ति की ही नहीं
मुक्ति की भी
चाह नहीं है
इस घट में,
वाह - वाह की
परवाह नहीं है
प्रशंसा के क्षण में
दाह के प्रवाह में अवगाह करूँ
पर! आह की तरंग भी
कभी न उठे
इस घट में ..... संकट में
इसके अंग-अंग में
रग - रग में
विश्व का तामस आ
भर जाय
किन्तु विलोम - भाव से,
यानी!
ता....म....स....स....म....ता!