हे परमात्मन्!
यह सब
आपके प्रसाद का ही
परिपाक है पावन,
कि
पाँच खण्ड का प्रासाद .....
पास है
अप्सरा - सी भी प्यारी पत्नी
प्रमदा होकर भी
पति की सेवा में
अप्रमदा है प्रतिपल!
प्राण-प्यारे दो-दो पुत्र
भोग-उपभोग सम्पदा!
सम्पन्न हूँ.....सानन्द...
किन्तु
एक ही आकुलता है
कि
पड़ोसी का
दस खण्ड का महा भवन!
(मन में खटकता है रात-दिन...!)