इष्टानिष्ट के
योगायोग में
श्रमण का मन
अनुकूलता का
हर्ष का
प्रतिकूलता का
विषाद का
यदि अनुभव नहीं करता
तब यह नियोग है
कि
उसी के यहाँ
प्रतिदिन पानी भरता है
और प्राँगण में
झाडू लगाता है ‘योग’
और
विराग की वेदी पर
आसीन होता है
शुचि-उपयोग
भोक्ता पुरुष...!