यह जो तन है
मेरा वतन नहीं है
तन का पतन
मेरा पतन नहीं है
प्रकृति का आयतन है,
जन-मन-हारक नर्तन
परिवर्तन .....वर्तन
अचेतन है
फिर, इसका क्यों हो
गीत...गान...कीर्तन ?
इसका तनातन
स्थायी बनाने का
और यतन
सब का स्वभाव-शील है
कभी उत्थान, कभी पतन
मैं प्रकृति से चेतन हूँ
प्रकाश-पुंज रतन हूँ
सनातन हो नित-नूतन
ज्ञान - गुण का केतन मेरा वतन है
वेदन - संवेदन अनन्त वेतन है
इसलिए मैं
बे-तन हूँ |