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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • कुटिया.....!

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    ओ री! कलि की सृष्टि

    कलि से कलुषित

    कलंकिनी दृष्टि !

    सदा शंकिनी!

    अवगुण - अंकिनी!

    कभी-कभी तो

    गुण का चयन किया कर!

    तेरी वंकिम दृष्टि में

    केवल अवगुण ही झलकते हैं क्या ?

    यहाँ गुण भी बिखरे हैं

    तरतमता हो भले ही

    ऐसा कोई जीवन नहीं है

     

    कि  

    जिसमें

    एक भी गुण नहीं मिलता हो

    नगर-उपनगर में

    पुर-गोपुर में

    अभ्रंलिह प्रासाद हो

    या कुटिया

    जिसके पास

    कम से कम एक तो

    प्रवेश द्वार

    होता अवश्य !


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