आम तौर से
पके आम की यही पहचान होती है
हाथ के छुवन से
मृदुता का अनुभव
फूटती पीलिमा
तैर आती नयनों में।
फूल समान नासा फूलती है
सुगन्ध सेवन से।
फिर!
रसना चाहती है रस चखना
मुख में पानी छूटता है
तब वह क्षुधित का
प्रिय भोजन बनता है।
यही धर्मात्मा की प्रथम पहचान है,
मेरा सो खरा नहीं
खरा सो मेरा
वाणी में मृदुता
तन-मन में ऋजुता
नम्रता की मूर्ति
तभी तो
भव से प्राणी छूटता है
मुक्ति उसे वरना चाहती है
और वह उसका
प्रेम-भाजन बनता है |