कृति रहे
संस्कृति रहे
चिरकाल तक
मात्र! जीवित!
सहज प्रकृति का
श्रृंगार - श्रीकार
मनहर आकार ले
जिसमें आकृत होता है,
कर्ता न रहे
विश्व के सम्मुख
विषम विकृति का
अपार संसार
अहंकार का हुंकार ले
जिसमें जागृत होता है
और हित...
..... निराकृत होता है |