एक हाथ में दीया है
एक हाथ की ओट दिया
हवा से बुझ न पाये,
अपना श्वाँस भी
बाधक बना है आज,
टिम टिमाता जीवित है
जीवन - खेल
स्वल्प बचा है
दीया में तेल
तेल से बाती का सम्बन्ध भी
लगभग टूट चुका है,
जलती-जलती
बाती के मुख पर
जम चुका है
कालुष कालिख मैल,
श्वास क्षीण है
दास दीन है
किन्तु आस अबुझ
नित-नवीन
प्रभु-दर्शन की
कब हो मेल
कब हो मेल...?