आप
असम्मति प्रकट कर नहीं सकते
यह मेरा निर्णय
स्वीकार करना पड़ेगा आपको
कि
आपका श्रीपाद
सुखद निरापद
अगाध! मानस
आनन्द की अपरिमेय लहरों से
लहरा रहा है
अन्यथा
तट पर तैरती हुई
गज-मुक्ता को भी
पराजित करती हुई
अपनी अनुपम अनन्य
मृदु मंजु कान्ति से
छविमय शुचिमय
शशि-सित-धवला
औ' नखपक्तियों के मिष
मौक्तिक मणियाँ
चुन-चुन चुगने क्यों
तत्पर है !
मंद मंद
हँसता हँसता
यह मम मानस हंस!
सब हंसों के
सब अंशों के
अंश अंश के
पूरक अंश!
हे परम हंस!
हे अनुत्तर...
उत्तर दो!