Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • तुम कैसे पागल हो

       (0 reviews)

    रेत रेतिल से नहीं

    रे! तिल से  

    तेल निकल सकता है

    निकलता ही है विधिवत् निकालने से

    नीर-मन्थन से नहीं

    विनीत-नवनीत

    क्षीर-मन्थन से

    निकल सकता है

    निकलता ही है

    विधिवत् निकालने से।

     

    ये सब नीतियाँ

    सबको ज्ञात हैं

    किन्तु हित क्या है ?

    अहित क्या है ?

    हित किस में निहित है कहाँ ज्ञात है ?

    किसे ज्ञात है ?

    मानो ज्ञात भी हो तुम्हें

    शाब्दिक मात्र...!

     

    अन्यथा

    अहित पन्थ के पथिक

    कैसे बने हो तुम!

    निज को तज  

    जड का मन्थन करते हो

    तुम कैसे पागल हो ?

    तुम कैसे ‘पाग' लहो |


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...