रेत रेतिल से नहीं
रे! तिल से
तेल निकल सकता है
निकलता ही है विधिवत् निकालने से
नीर-मन्थन से नहीं
विनीत-नवनीत
क्षीर-मन्थन से
निकल सकता है
निकलता ही है
विधिवत् निकालने से।
ये सब नीतियाँ
सबको ज्ञात हैं
किन्तु हित क्या है ?
अहित क्या है ?
हित किस में निहित है कहाँ ज्ञात है ?
किसे ज्ञात है ?
मानो ज्ञात भी हो तुम्हें
शाब्दिक मात्र...!
अन्यथा
अहित पन्थ के पथिक
कैसे बने हो तुम!
निज को तज
जड का मन्थन करते हो
तुम कैसे पागल हो ?
तुम कैसे ‘पाग' लहो |