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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • राकेन्दु

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    इसी की गवेषणा

    करनी थी इसे

    कि

    किस कारण से

    समग्र-सत्ता-सिन्धु

    उमड़ रहा है यह

    तट का उल्लंघन तक

    कर गया है अब !

    नाच नाचते

    उछल उछल कर

    उज्ज्वल उज्ज्वल

    ये बिन्दु ! बिन्दु!

    हे! राकेन्दु !

     

    तभी तो

    चन्दन-गन्ध लिये

    कर कमल बन्द हुए

    मन्दी-बन्दी

    नयन कुमुदिनी

    मुदित हुई

    मन्दं मन्द मुस्कान लिये

    मधुरिम मार्दव

    अधरों पर

    और

    यह चतुर-चातुर

    चेतन चातक

    चकित हुआ

    भाव चाव से

     

    शीतल चाँदनी का

    चिदानन्दिनी का

    पान कर रहा है

    इतना ही नहीं

    और भी गोपनता

     

    बाहर आ प्रकाश को छू रही है

    मुक्ता फल सम

    शान्त शीतल

    शुभ्र शुभ्रतम्

    सलिल सीकर

    लीला सहित

     

    बरस रहे हैं

    इस के इस

    मानस की इन्दुमणि से

    इसलिए

    सुधा-सिन्धु हो तुम !

    सौम्य-इन्दु हो तुम !


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