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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पीयूष भरी आँखें

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    अपरिचित होकर भी

    परिचित-सी लगती है

    अतल सागर सत्ता से निकली

    इधर...

    मेरी ओर एक

    सजीव लहर आ रही है

    हर क्षण, हर पल

    अश्रुत-पूर्व

    श्रुतिमधुर गीत

    गहर गहर कर गा रही है

    वासना की नहीं

    उपासना की रूपवती मूर्ति

     

    मेरे लिए

    पीयूष भरी

    आँखें लिए

    जहर नहीं

    महर ला रही है

    देखो ना !

    मोह-मेघ की महाघटायें

    दुर्वार घूँघट

    पूरी शक्ति लगा

    चीरती चीरती

    चिदानन्दिनी

    शरद चाँदनी

    नजर आ रही है  !

     


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