Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पक्षपात : पक्षाघात

       (0 reviews)

    शिशिर वासत से

    छिल सकता है

    अशनिपात से

    जल सकता है

    गल सकता भी

    हिम पात से है

    पल पल पुराना

    अधुनातन

    पूरण गलन का

    ध्रुव निकेतन

    अणु अणु मिलकर

    बना हुआ यह तन...।

    पर! इन सबसे

    कब प्रभावित होता ?

    मानव मन !

     

    और जिस रोग के योग में

    भोगोपभोग में

    बाधा आती है

    भोक्ता पुरुष को

    उसका

    एक ओर का हाथ

    साथ नहीं देता

    कर्महीन होता है

    उसी ओर का पाद

    पथ पर चल नहीं सकता

    शून्य दीन होता है

    मुख की आकृति भी

    विकृति होती है

    एक देश!

     

    वैद्य लोग

    उसे कहते हैं

    पक्षाघात रोग

    किन्तु उसका

    मन मस्तिष्क पर

    प्रभाव नहीं

    दबाव नहीं

    इसलिए

    पक्षाघात ही  

    स्वयं पक्षाघात से

    आक्रान्त पीडित है

    किन्तु यथार्थ में पक्षपात ही

    पक्षाघात है

     

    जिसका प्रभाव

    तत्काल पड़ता है

    गुप्त सुरक्षित

    भीतर रहता

    जीवन नियन्ता

    बलधर मन पर...।

    अन्यथा हृदय स्पन्दन की

    आरोहण अवरोहण स्थिति

    क्यों होती है ?

    किसकी करामात है यह ?

    यही तो ‘पक्षपात’ है।

     

    सहज मानस

    मध्यम तल पर

    सचाई की मधुरिम

    भावभंगिम तरंग

    ...........उठती हैं

    क्रम क्रम से आ

    रसना के तट से

    टकराती हैं, वह

    रसना तब... भावाभिव्यंजना

    करती है

    पर!

    लड़खड़ाती, कहती है !

    कोई धूर्त

    मूर्त है या अमूर्त

    पता नहीं...।

     

    मेरा गला घोंट रहा है,

    ‘ज्ञात नहीं मुझे’

    ‘वही तो पक्षपात है’

    किसी एक को देखकर

    आँखों में

    करुणाई क्यों ?

    छलक आती है

    और किसी को देख कर

    आँखों में

    अरुणाई क्यों ?

    झलक आती है

    किसका परिणाम है यह ?

    इसी का नाम

    ‘पक्षपात’ है

     

    पक्षपात...!

    यह एक ऐसा

    गहरा-गहरा

    कोहरा है

    जिसे

    प्रभाकर की प्रखर-प्रखरतर

    किरणें तक

    चीर नहीं सकतीं

    पथ पर चलता पथिक

    सहचर साथी

    उसका वह

    फिर भला  

    कैसा दिख सकता है ?

    सुन्दर सुन्दर-सा  

    चेहरा गहरा...!

     

    पक्षपात...!

    यह एक ऐसा

    जल-प्रपात है

    जहाँ पर

    सत्य की सजीव माटी

    टिक नहीं सकती

    .......बह जाती

    पता नहीं कहाँ ?

    ......वह जाती

    और असत्य से अनगढ़

    विशाल पाषाण खण्ड

    अधगढ़े टेढ़े-मेढ़े

    अपनी धुन पर अड़े

    शोभित होते...।

     

    भयानक पाताल घाटी

    नारकीय परिपाटी

    जिसमें

    इधर उधर टकराता

    फिसलता फिसलता जाता

    दर्शक का दृष्टिपात।

    एतावता  

    पक्षपात पक्षाघात है

    अक्षघात है, ब्रह्मघात है

    इसलिए

    प्रभु से प्रार्थना है

    स्वीकार हो प्रणिपात!

    आगामी अनन्तकाल प्रवाह में

    कभी न हो

    पक्षपात से

    मुलाकात...।


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...