विपरीत रीत बनी दशा में अमा की घनी निशा में स्वयं को देखा था कि मैं अकेला प्रकाश पूँज हूँ ललाम हूँ शेष सब शाम शाम किन्तु ज्ञात हुआ आज! पौर्णिमा केवल आप हो उद्योत इन्दु ! और यह टिम टिमाता खुद खद्योत है।