Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • महका मकरन्द

       (0 reviews)

    हरा भरा था

    पल्लव पत्तों

    से उभरा था

    प्रौढ़ पौधा

    लाल गुलाब का

    कल तक !

    डाल-डाल के

    चूल-चूल पर

    फूल-दल फूला

    महका मकरन्द्

    पूरा भरा था

    कल तक...!

    आज उदासी है उसमें...!

    अकुलाया है

     

    लगता है

    घबराहट से उसका कण्ठ

    भर आया है

    कौन सुनता है उस रुदन को

    अरण्य रोदन जो रहा

    जिस पर मँडराता

    मकरन्द प्यासा

    भ्रमर-दल ने

    इस भीतरी गन्ध को भी

    सूँघा है

    अपनी नासा से

    अपनी आजीविका

    लुटती देख...!

     

    बुला रहा है माली को

    और कह रहा है

    क्या सोचता है ?

    अपराधी और नहीं

    हे! उपचारक !

    ऊपर ऊपर केवल

    उपचार करता जा रहा है

    अन्धाधुंध...!

    क्या यह उपचार है ?

    मात्र उपचार !

     

    भीतर झाँकना भी अनिवार्य है

    तू भूल रहा है

    इस के मूल में

    एक कीड़ा

    क्रीडा कर रहा है।

    सानन्द

    मकरन्द चूस रहा है

    क्या ? अभी ज्ञात नहीं

    हे! बावला बागवान !

    कैसे बनेगा तू ?

    भाग्यवान ! भगवान...!


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...