अरी! वासना
यथा नाम तथा काम है तेरा
तुझमें सुख का
निवास वास ना!
तुझमें गहराई है कहाँ ?
और मैं
गहराई में उतरने का
हामी हूँ
चंचल अंचल में
केवल लहराई है
तेरे आलिंगन में
मोहन इंगन में
सुख की गन्ध तक नहीं
मात्र सुख की वासना है
जो ओढ़ रखी है तूने
जिस में सारी माया ढकी है
इसलिए इसे
अपनी उपासना की
अनन्त सत्ता में
खो जाने दो
ओ ! वासना !