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सोशल मीडिया / गुरु प्रभावना धर्म प्रभावना कार्यकर्ताओं से विशेष निवेदन ×
नंदीश्वर भक्ति प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • करुणाई

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    विशाल विशालतम

    निहाल निहालतम

    विश्वावलोकिनी

    विस्फारिता

    दो आँखें

    जिन में झाँकता हूँ

    सहज-आप

    आत्मीयता आँकता हूँ

    जहाँ निरन्तर

    तरंग क्रम से

    असीम परिधि को

    प्रमुदित करती है

    तरलित करती है

    करुणाई...

     

    पर!

    लाल गुलाब की

    हलकी-सी वह...।

    क्यों तैर रही है

    अरुणाई...?

    बताओ इसमें क्या है ?

    गहनतम गहराई...।

    हे शाश्वत सत्ता!
    क्या यही कारण है ?

    जो विलम्ब हुआ  

    आत्मीयता उपेक्षित कर

    निरालम्ब हुआ

    भटकता रहा

    सुचिर काल तक

    लौटा नहीं

    रोता हुआ भी

     

    इसी बीच  

    मौन का भंग होता है

    और!

    गौण का रंग होता है

    ‘नहीं नहीं, यथार्थ कारण और है

    जो निकटतम है

    ज्ञात होना

    विकटतम है

    कि

    सत्ता के रोम-रोम पर  

    पड़ा हुआ

    प्रभाव ...... दबाव

    परसत्ता का

    राजसत्ता-राजसता की  

    वह परिणति...

    अरुणाई…

     

    अपने चरम की ओर

    फैलती तरुणाई...

    उसी की यह

    परछाई है...

    प्रतीत हो रही है

    तेरी आँखों से

    मेरी आँखों में

    अपना दोष, भला हो

    पर पर रोष उछालो...।

    जब नहीं होता

    संयम-तोष

    घट में होश

    ‘यह श्रुति’

    श्रुति सुनती है

     

    तत्काल

    आँखें खुलीं

    राजस-रज...

    ..... धुली

    भ्रम टूट गया

    श्रम छूट गया

    और…

     

    गुरु सत्ता में

    लघु सत्ता जा

    पूर्ण मिली

    पूर्ण घुली

    मधुरिम संवेदन से

    आमूल सिंचित हुआ

    एक ताजगी

    एकता जगी...।


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