इस युग में भी
सत-युग सा
सुधार तो हुआ है
पर लगता है
उधार हुआ है,
अन्यथा
कभी का हुआ होता
उद्धार...।
प्रभु के कदमों पर
चलने वाले कदम कम नहीं हैं।
उन कदमों में
मखमल मुलायम
अच्छी अहिंसा पलती है
साथ ही साथ
उन कलमों में
हिंसा की दुगनी ज्वाला जलती है
इस युग में भी
सत युग सा
सुधार तो हुआ है
पर लगता है
उधार हुआ है !