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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • मोक्ष - ललना को जिया ! कब बरेगा?

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    मोक्ष - ललना को जिया ! कब बरेगा.jpg

     

    स्वरूप - बोध बिन, सहता दुख निशिदिन,

    यदि उसे पाता, तू बन सकता जिन।

    नितनिजा - नुमनन कर व्यामोह हनन,

    चाहता न मरण यदि न जरा न जनन ।

    आशा - गर्त यह कदापि न भरेगा,

    मोक्ष - ललना को जिया! कब बरेगा? ।।१।।

     

    सुखदाता नहीं मात्र वस्त्र मुंचन,

    दुखहर्ता नहीं मात्र केश लुंचन ।

    करे राग द्वेष जो धर नग्न - भेष,

    वे अहो जिनेश! पावें न सुख लेश।।

    आत्मावलोकन अरे! कब करेगा,

    मोक्ष - ललना को जिया ! कब वरेगा? ।।२।।

     

    करता न प्रमाद, नहीं हर्ष विषाद,

    लेता वही मुनि, नियम से निज - स्वाद ।

    सुमणि तज काच में, क्यों तु नित रमता?

    पी मद, अमृत तज, क्यों भव में भ्रमता?

    निज - भक्ति - रस कब, तुझ में झरेगा?

    मोक्ष - ललना को जिया! कब वरेगा? ।।३।।

     

    तज मूढता त्रय, भज सदा रत्नत्रय,

    यदि सुख चाहता, ले ले, झट स्वाश्रय ।

    अब ‘‘विद्या" जाग, अरे! शिव - पथलाग,

    शीघ्र राग त्याग, बन तू वीतराग ।।

    कब तक लोक में, जनम ले मरेगा?

    मोक्ष - ललना को जिया कब वरेगा? ।।४।।

     

    - महाकवि आचार्य विद्यासागर

    Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव


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