श्रुत पंचमी के लिए श्रुत स्कंध यंत्र
श्रुत पञ्चमी - जैन पर्व
भगवान् महावीर के मुक्त हो जाने के लगभग 600 वर्ष पश्चात् जब श्रुतज्ञान लोप हो गया। तब गिरनार पर्वत की गुफा में निवास करने वाले धरसेनाचार्य महाराज के मन में श्रुत संरक्षण का विचार आया। निमित्तज्ञान से उन्होंने जाना कि मेरी आयु अल्प रह गई है, मेरे बाद इसअंग ज्ञान का लोप हो जायेगा। अत: योग्य शिष्यों को मुझे अंग आदिश्रुत का ज्ञान करा देना चाहिए। ऐसा विचार कर उन्होंने महिमानगरी में अर्हबलि आचार्य के पास पत्र भेजा तब उन्होंने नरवाहन और सुबुद्धि नामक मुनिराज को उनके पास भेजा। परीक्षण के लिये दोनों को दो विद्याएँ सिद्ध करने के लिए दीं। गुरु आज्ञानुसार, गिरनार पर्वत पर भगवान् नेमिनाथ की निर्वाण शिला पर पवित्र मन से विद्या सिद्ध करने बैठ गये और मन्त्र सिद्ध कर लिया। परीक्षा में उत्तीर्ण शिष्यों को सब तरह योग्य पा उन्हें खूब शास्त्राभ्यास कराया तथा ग्रन्थ समाप्ति पर भूत जाति के देवों द्वारा मुनियों की पूजा करने पर नरवाहन मुनि का नाम भूतबलि तथा सुबुद्धि मुनि की अस्त-व्यस्त दंत पक्ति सुव्यवस्थित हो जाने से उनका नाम पुष्पदन्त रखा। कुछ समय पश्चात् उन मुनिराजों ने षट्खण्डागम नामक सिद्धान्त ग्रन्थ को लिपिबद्ध कर ज्येष्ठ शुक्ला पञ्चमी को पूर्ण किया। उस दिन बहुत उत्सव मनाया गया। तभी से प्रतिवर्ष ज्येष्ठ सुदी पञ्चमी को श्रुतपञ्चमी का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन शास्त्रों की पूजा की जाती है।
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