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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

प्रवचन 01/09/2018 गौरझामर


srajal jain

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*गौरझामर* 01-09-2018
*श्रद्धांजलि अर्पण की गई*
मुनि श्री तरुण सागर जी महाराज की समाधि होने पर गौरझामर में संत निवास में विराजमान मुनि श्री विमल सागर जी, मुनि श्री अनंत सागर जी ,मुनि श्री धर्म सागर जी, मुनि श्री अचल सागर जी, मुनि श्री अतुल सागर जी, मुनि श्री भावसागर जी  के सानिध्य में श्रद्धांजलि सभा हुई जिसमें गौरझामर दिगंबर जैन समाज के द्वारा मुनि श्री तरुण सागर जी को श्रद्धांजलि दी गई इस अवसर पर मुनि श्री ने कहा कि मुनि श्री तरुण सागर जी महाराज ने सल्लेखना धारण की है जैन धर्म में समाधि सल्लेखना सबसे महत्वपूर्ण कार्य माना गया है यदि शरीर में कोई रोग हो जाता है या कोई बीमारी हो जाती है या शरीर पर कोई संकट आ जाता है तो जैन मुनि सल्लेखना धारण कर लेते हैं यह वीरमरण कहा गया है जिस प्रकार सेना का कोई जवान युद्ध लड़ते लड़ते मरण को प्राप्त होता है तो भी वीर मरण कहा जाता है इसी प्रकार से यह मरण वीरमरण कहा गया है जैन दर्शन में इसको *मृत्यु महोत्सव* कहा गया है जन्म का महोत्सव तो सभी मनाते हैं लेकिन मृत्यु महोत्सव विरले जीव  मनाते हैं जिस प्रकार मरण के बाद शरीर के अंगों को दान करते हैं उसी प्रकार से इसमें सल्लेखना के पूर्व बुद्धि पूर्वक सब कुछ त्याग करके मरण किया जाता है ऐसा शास्त्रों में लिखा है कि जिसका अच्छे से सल्लेखना मरण होता है कम से कम दो-तीन भव  ज्यादा से ज्यादा 7- 8 भव में मुक्ति की प्राप्ति होती है जिस प्रकार चोर हमारी संपत्ति चुरा लेता है तो उसका कोई पुण्य प्राप्त नहीं होता है लेकिन दान त्याग करने से पुण्य प्राप्त होता है ऐसा ही सल्लेखना में होता है  मुनि श्री तरुण सागर जी ने राष्ट्रीय स्तर पर जो कार्य किए हैं वह बहुत महत्वपूर्ण रहे हैं हम सभी उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं उनकी कमी की पूर्ति अन्य कोई नहीं कर सकता है
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