Sneh Jain Posted June 6, 2017 Report Share Posted June 6, 2017 परमपूज्य गुरुदेव आचार्य विद्यासागरजी महाराज के 50वें संयम दिवस पर अपने भावों की अभिव्यक्ति गुरुदेव की वंदना से प्रारंभ करती हूँ। पहिलउ जयकारउं विद्यासायर परम-मुणि। मुणि-वयणे जाहँ सिद्धन्त-झुणि। झुणि जाहँ अणिट्ठिय रत्तिदिणु। जिणु हियए ण फिट्टइ एक्कु खणु। खणु खणु वि जाहँ ण विचलइ मणु। मणु मग्गइ जाहँ मोक्ख-गमणु गमणु वि जहिं णउ जम्मणु मरणु।। मरणु वि कह होइ मुणिवरहँ। मुणिवर जे लग्गा जिणवरहँ। जिणवर जें लीय माण परहो। परु केव ढुक्कु जें परियणहो। परियणु मणे मण्णिउ जेहिं तिणु। तिण-समउ णाहिं लहु णरय-रिणु। रिणु केम होइ भव-भय-रहिय। भव-रहिय धम्म-संजम-सहिय। जे काय-वाय-मणे णिच्छिरिय जे काम-कोह-दुण्णय-तरिय। ते एक्क-मणेण हउं वंदउं गुरु विद्यासागर परमायरिय। सर्वप्रथम मैं गुरुदेव आचार्य विद्यासागरजी महाराज का जयकार करती हूँ जिन आचार्यश्री की सिद्धान्त-वाणी मुनियों के मुख में रहती है और जिनकी ध्वनि रात-दिन निस्सीम रहती है। जिनके हृदय से जिनेन्द्र भगवान एक क्षण के लिए भी अलग नहीं होते। एक क्षण के लिए भी जिनका मन विचलित नहीं होता मन भी ऐसा कि जो मोक्ष गमन की याचना करता है गमन भी ऐसा कि जिसमें जन्म और मरण नहीं है। मृत्यु भी ऐसे आचार्य की कहाँ होती है जो जिनवर की सेवा में लगे हुए हैं। जिनवर भी वे जो दूसरो का मान ले लेते हैं। जो परिजनों के पास भी पर के समान जाते हैं। जो स्वजनों को अपने में तृण के समान समझते हैं जिनके पास नरक का ऋण तिनके के बराबर भी नहीं है। जो संसार के भय से रहित हैं उन्हें भय हो भी कैसे सकता है वे भय से रहित और धर्म एवं संयम से सहित हैं। जो मन-वचन और काय से कपट रहित हैं काम और क्रोध के पाप से तर चुके हैं। ऐसे परमाचार्य विद्यासागर गुरुदेव को मैं एकमन से वंदना करती हूँ। 3 Link to comment Share on other sites More sharing options...
अमन जैन Posted June 6, 2017 Report Share Posted June 6, 2017 नमोस्तु गुरुवर Link to comment Share on other sites More sharing options...
Nikhil k jain Posted June 15, 2017 Report Share Posted June 15, 2017 Jai ho chote baba ki. Link to comment Share on other sites More sharing options...
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