Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

Recommended Posts

अर्हं ही चिज्ज्योति है, अर्हं अर्हत् सिद्ध।

अर्हं साधु मंगलं, अर्हं लोक प्रसिद्ध ।।1।।

 

अर्हं से सब स्वर सधे, व्यंजन होवें व्यक्त।

अर्हं पूरण ज्ञानमय, करता चित्त सशक्त।।2।।

 

अर्हं के सन्नाद से, भागें रोग विकार।

चित्त शान्ति शक्ति भरे, जानें शुद्ध विचार ।।3।।

 

श्वेत वर्ण अरिहन्त ध्या, लाल वर्ण में सिद्ध।

पीत वर्ण आचार्य ध्या, करता चित्त विशुद्ध ।।4।।

 

उपाध्याय ध्या नील में, ज्ञान विचार उदार।

हरे रंग में साधु ध्या, सुख समृद्धि अपार ।।5।।

 

अहं भाव ही मोह है, भ्रम माया अज्ञान।

अर्हं नाशे अहं को, सत्य मिले सज्ज्ञान।।6।।

 

चन्द्रसूर्य सा तेजमय, अर्हं ध्याता संत।

ज्ञानकेन्द्र पर नित्य ही बन जाता अरिहन्त ।।7।।

 

चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय जायक रूप।

यह अनुभव ही सार तो, दिखता जग जड़ रूप ।।8।।

 

चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय ज्ञायक रूप।

निज गुण-गण में लीन हूँ, गगन शून्य बेरूप।।9।।

 

चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय ज्ञायक रूप।

काम क्रोध-मद-लालसा, भाव सभज्ञी जड़ रूप।।10।।

 

चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय ज्ञायक रूप।

देह भला कब हो सकी, आतम सी चिद्रूप ।।11।।

 

चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय ज्ञायक रूप।

इष्ट अनिष्ट जग कल्पना, है अज्ञान स्वरूप।।12।।

 

चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय ज्ञायक रूप।

हर्ष-वेद आवागमन, ज्यों छाया अरू धूप ।।13।।

 

चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय ज्ञायक रूप।

औपाधिक पर भाव हैं, मैं गरीब मैं भूप ।।14।।

 

चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय जायक रूप।

अच्छा हो यह सोचना, अविवेकी प्रारूप ।।15॥

 

चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय जायक रूप।

मान और अपमान तो, मान कषाय स्वरूप ।।16।।

 

चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय ज्ञायक रूप।

किया,करूँगा, कर रहा, मन का तृष्णा कूप ।।17।।

 

दुर्लभ गुरु का दर्श है, दुर्लभ गुरु संस्पर्श।

दुर्लभ गुरु दर्शन पुन:, दुर्लभ गुरु से हर्ष ।।18।।

 

दुर्लभ गुरु मुख से वचन, दुर्लभ गुरु मुस्कान।

दुर्लभ गुरु आशीष है, दुर्लभ गुरु से ज्ञान ।। 19।।

 

दुर्लभ से दुर्लभ रहा, गुरु गरिमा गुणगान।

गुरु आज्ञा पूरण पले, दुर्लभतम यह जान ।।20।।

  • Like 3
Link to comment
Share on other sites

×
×
  • Create New...