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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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भगवान महावीर ने गौतम गणधर से कहा

हे गौतम!

जो समस्त सारों में सारभूत है, वह सारभूत तत्त्व ध्यान नाम से ही है। यही बात सभी अन्य तीर्थंकरों ने भी कही है।

 

आचार्य श्री कुन्दकुन्द देवजी

ध्यान रूपी अग्नि में छ: आवश्यक कर्मों की क्रियाओं से जो निरंतर व्रत रूपी मंत्रों के द्वारा कर्मों का होम करते हैं ऐसे आत्मज यज्ञ में लीन साधु को मैं वंदन करता हूँ।

 

आचार्य पूज्यपाद - ‘इष्टोपदेश' ग्रंथ में कहते हैं- “व्यवहार से बाहर दूर रहने वाले और आत्मा का अनुष्ठान करने वाले योगी को कोई अपूर्व आनन्द उत्पन्न होता है।'' |

 

आचार्य गुणभद्र स्वामी - ने ‘आत्मानुशासन' ग्रन्थ में कहा है- “मैं अकिंचन हूँ, मेरा कुछ भी नहीं, बस ऐसे होकर बैठे रहो और तीन लोक के स्वामी हो जाओ। यह तुम्हें बड़े योगियों के द्वारा जाने जा सकने लायक परमात्मा का रहस्य बतला दिया है।''

 

आचार्य नागसेन - ‘तत्त्वानुशासन ग्रन्थ' में कहते हैं- “जो सदा ही ध्यान का अभ्यास करने वाला है परन्तु तद्भव मोक्षमार्गी हीं है तो भी उस ध्याता को अशुभ कर्मों की निर्जरा व संवर होता है। अर्थात् वह पाप से मुक्त हो जाता है।

 

आचार्य श्री विद्यासागर जी - ध्यान काल में, ज्ञान का श्रम कहां, पूरा विश्राम

 

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी - ध्यान एक (Portable) पोर्टेबल यान है। जिसकी ऊर्जा के साथ हम कहीं भी विचरण कर सकते हैं।

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