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कायोत्सर्ग (Kayotsarg) अर्थात् काया का उत्सर्ग (Leave Soul Aside)


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महान जैन तीर्थंकरों, आचार्यों एवं मुनियों के द्वारा दी गई कायोत्सर्ग की विधि अपनी आत्मा को शरीर से अलग कर आत्मस्वभाव में आने का माध्यम है। कायोत्सर्ग अवस्था में योगी, श्रावक अपने ध्यान की क्रियाओं से शरीर को स्वयं से अलग कर देता है तथा अपने आत्मा के अनन्त सुखों का अनुभव करता है। वह केवल होने की स्थिति (State of Being Alone) के द्वारा इसी कायोत्सर्ग के माध्यम से अपने अस्तित्व की पहचान करता है।

 

जैन परम्परा में कायोत्सर्ग के दो मुख्य आसन हैं:-

  1. पद्मासन मुद्रा
  2. खड्गासन मुद्रा

 

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भगवान ऋषभदेव की पद्मासन मुद्रा व भगवान बाहुबली की खड्गासन मुद्रा हमें इसका परिचय देती है। देव वन्दना से पूर्व, धार्मिक अनुष्ठान करने से पूर्व व उपरान्त सामायिक, प्रतिक्रमण आदि के समय कायोत्सर्ग एक आवश्यक क्रिया है, जिससे हम अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित कर सकें।

 

इसके अन्य लाभ निम्न प्रकार हैं:-

  1. मानसिक तनाव दूर करना (ToRemove Mental Stresses)
  2. ध्यान के लिए स्वयं को तैयार करना (Get ready to self for Dhyan)
  3. मानसिक शक्ति का विकास (Development of MentalPower)
  4. शारीरिक शक्ति का विकास (Physical Development)
  5. शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास एवं शरीर के अन्य अंगों पर शक्तिपात करना। (Development of Antibodies for Resisting Disease and power transformation on deceased organs)

 

इस कायोत्सर्ग की प्रक्रिया में श्वासोच्छ्वास पर ध्यान देते हुए उनको गिना जाता है, तथा साथ ही णमोकार जैसे महाप्राण मंत्र का उन श्वासों पर आरोहण किया जाता है। जिससे यह प्रक्रिया ना केवल शारीरिक रोगों अपितु मानसिक विकारों को दूर करती है तथा आत्मा में जन्म-जन्मान्तर से बंधे हुए कर्मों को भी जलाती है। इसी प्रक्रिया से योगी केवलज्ञान (enlightenment or supreme knowledge) प्राप्त करते हैं।

 

कायोत्सर्ग (Kayotsarg) एक Relaxation Technique है। Kayotsarg means relaxation of the body with full awareness. According to Lord Mahavir 'relaxation relieves one from all sorrow.' Modern era has termed kayotsarg as relaxation. Relaxation is the process of awakening the consciousness and relieving oneself from all mental and physical stresses. A process which finally enlightened the soul power by practice. जब 27 बार श्वासोच्छवास को गिना जाता है, तब एक कायोत्सर्ग पूर्ण हो जाता है। साथ ही 09 बार णमोकार मंत्र का पाठ हो जाता है।

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