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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

कुछ शब्द गुरु चरणों मे....


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हे इस युग के शिरोमणि,
    प्रातः स्मरणीय मेरे गुरु,
हे जैनों के जैनाचार्य,
     सर्व हितकरी मेरे आचार्य,
हे संतो मे सर्व श्रेष्ट,
     हम शिष्यों के देवाधिदेव,
हम करते तुमको नमस्कार,
       ह्दय वेदी से नित बारम्बार,
तुम जैसा यहाँ शिष्य नहीं,
       ना ही गुरु तुम सा समान,
हे त्याग मूर्ति हो तुम्हें प्रणाम,
       व्रत के धारी हो तुम्हें प्रणाम,
हे वितरागी हो तुम्हें प्रणाम,
       दिगंबर धारी हो तुम्हें प्रमाण,
हे बाल ब्रह्मचारी तुम्हें प्रणाम,
        गृह त्यागी हो तुम्हें प्रणाम।

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दर्शन जब किये थे मैंने,
     खुद को फिर ना रोक पाई,
एक टगर से देखा तुझको,
     फिर भी कुछ ना कह पाई,
वो चाँद से मुखड़े पर तेरी,
    मुस्कान बहुत ही प्यारी है,
तप संयम के इस बगिया की,
    महक बहुत ही न्यारी है।
समीप आकर गुरुवर तेरे,
      तुझमें ही मै खो जाती,
पर से मुझको क्या लेना,
      तेरी ही मैं हो जाती,
इस बेरंग दुनिया मे,
      तूने ज्ञान के रंग भरे,
तुझे पाकर ऐसा लगता,
       कुछ भी पाना शेष नहीं।

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जिन्होंने आगम को दी नई पहचान है,

जो जीवन मे बनकर आए नई उड़ान है,

जिन्होंने ज्ञान से पाया जग का सार है,

उन्होंने जग मे लुटाया ज्ञान निसार है,

उनको वंदन हमारा लाखों बार है,

उनको वंदन हमारा लाखों बार है।🙏🏻

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जल चन्दन अक्षत पुष्प नैवेघ,

   दीप धूप फल आया हूँ,

अब तक जो मैंने किये पुण्य,

   उनका फल पाने आया हूँ,

यह जीवन अर्पण करता हूँ,

   गुरु चरण रज दो हे स्वामी,

यह अर्घ समर्पित तुमको है,

   चरणों मे जगह दो हे स्वामी।

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  • 7 months later...

जीवन के अंधेरे मे सूरज रूपी रौशनी हो तुम,

काली अंधेरी रात मे चांद सी चांदनी हो तुम,

निःशब्द से शब्दों मे भाव रूपी कलम हो तुम,

जिज्ञासा का समाधान सावल का हल हो तुम।

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जब गुरु महिमा की बात होती है,

तो सारी शब्द माला बोनी लगती है,

निःशब्द हो जाते है लेखक भी,

स्याही कलम फीके हो जाते है,

तब श्रद्धा से भरे भाव मन के,

भक्ति के अश्रु बन नैनो से झलकते है,

अन्तः मन से एक ध्वनि निकलती है,

गुरु अपना आशीर्वाद बनाये रखना,

मै तो आबोध बालक हूँ गुरुवर,

भवों से भटकते आज शरण आया हूँ,

कोई नही मेरा एक आपके सिवा,

मार्गदर्शन पाने आपकी शरण आया हूँ।

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  • 1 month later...

जिनके पद चिन्हो मे चल सही राह का बोध हुआ,

एक अबोध बालक को भी सही ज्ञान का शोध हुआ,

मिल ही जाएगी उनसे मुक्ति हमको पूर्ण विश्वास है,

सम्पूर्ण समर्पण उनको कर दो उनमे ही भगवान है।

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  • 3 months later...

ज्ञान दिवाकर धरती मे जिससे कण कण प्रकाशित है,

उनके तप संयम की गाथा गाता धरा और अम्बर है,

झूम जाती है प्रकृति वहा जहाँ पड़ते उनके चरण है,

प्रभु महावीर के वेश मे गुरु अद्भुत विद्या सागर है।

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ज्ञान दिवाकर धरती मे जिससे कण कण प्रकाशित है,

उनके तप संयम की गाथा गाता धरा और अम्बर है,

झूम जाती है प्रकृति वहा जहाँ पड़ते उनके चरण है,

प्रभु महावीर के वेश मे गुरु अद्भुत विद्या सागर है।

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  • 2 months later...

चतुर्थ काल की चर्या कर जैसे मुनिवर युग मे रहते थे,

अपने संग लाखो प्राणी का उद्धार सहज ही करते थे,

निः सन्देह मेरे गुरुवर की चर्या उन सम कम नही है,

लग जाये उमर मेरी उनको वो मुझे प्रभु से कम नही है।

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तुम पूछते हो मुझसे क्यो गुरु को ह्दय बसाते हो,

क्यो तुम अपनी राहो का मंजिल उन्हे बताते हो,

मेरे कई विचारों का उलझनों का अंत हुआ था,

जब मेरा मेरे विद्या गुरु से साक्षात् दर्श हुआ था।

 

तो कैसे ना मै अपने गुरु को अपने ह्दय बसाऊंगा,

अरे वो जिस राहे बोलेगे मै उस राहे चल जाऊंगा,

तन माना मेरा है पर प्राण वही है इस तन के,

मै शिवपथ की हर राहो मे बस उनको गुरु बनाऊंगा।

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