Jump to content
सोशल मीडिया / गुरु प्रभावना धर्म प्रभावना कार्यकर्ताओं से विशेष निवेदन ×
नंदीश्वर भक्ति प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

आ श्री के चातुर्मास कलश स्थापना दिन के प्रवचन


Recommended Posts

जय जिनेंद्र 

 चलिए ,आइए चलते  है  भावो से अंतरिक्ष  पार्श्वनाथ  भगवान  जी के चरणो में ,जहाँ उनके सन्निकट  बैठे है  धरती के देवता आ .श्री विद्यासागर महामुनिराज  । 

देव शास्त्र गुरु के चरणो में नमोस्तु अर्पित करते हुए .....शिरपूर चातुर्मास में  चल रही  आ. श्री की प्रवचन  शृंखला से झरनेवाले ज्ञानामृत  रसपान कर लेते है  .... 

WhatsApp Image 2022-07-18 at 10.17.15 PM.jpeg

  कारण उन्ही के मंगल देशना से हम सभी जीव अपने जीवन को मंगलमय  बना लेते है अत: आज पुन:  गुरुवरजीं की वाणी लिखित स्वरुप में जन जन तक पहुंच जाए । सब के जीवन में अविस्मरणीय रहे इस मंगल भावो के साथ प्रथम गुरु चरणो मे त्रय शुद्धि से ,विशुद्ध भावो से नमोस्तु अर्पित  करती हूँ। नमोस्तु आचार्य  श्री नमोस्तु नमोस्तु ।

🙏🙏🙏

   आपकी वाणी जन जन तक पहुंचे, हर एक जीव का कल्याण होवे ऐसे मंगलभाव से आपकी *दिव्यवाणी लिखित रूप से वीरा प्रस्तुत* कर रही है।

 इस प्रवचन लेखन,टंकलेखन  आदि समय जो भी कुछ गलती हो गयी हो त्रुटी रह गयी हो तो वीरा प्रथम गुरुवर्य आचार्य श्री जीं से ही क्षमा चाहती है।

आपके बृहद आशीर्वाद  से ही, हे  गुरुवर !  महा राष्ट्र  मे विराजित महान संत आचार्य  भगवन जी आपका धर्मोपदेश प्रस्तुत करती हूँ।

*वंदे तद्गुणलब्ध्ये, अहं वंदे।*

🙏🙏🙏

*प्रात:स्मरणीय  श्रद्धेय आराध्य,संत शिरोमणि आचार्य  गुरुवर्य विद्यासागर महामुनिराज  जी की जय हो।*

_*आचार्य विद्यासागर महामुनिराज जी के शिरपूर चातुर्मास के मंगल देशना ।*_

🪔 *ज्ञानदीप*


🙏 *प्रवचन क्रमांक ५*

*रविवार दि. १७\७\२०२२*
*आषाढ  /श्रावण कृष्ण  चतुर्थी*

🚩_*चातुर्मास कलश स्थापना*_🚩

संकलन  / प्रस्तुती = _*सौ वीरश्री शीतल पाटील नविमुम्बई।*_

       *प्रात:कालिन  प्रवचन*

      अब सुनो यहाँ के प्रबंधको  ने सोचा है, यहाँ अव्यवस्था बहुत हो रही है, कुछ लोगो ने ये भी कहा है। महिलाओ  से ही यह भर जाऐगा सब ।और  पुरुषो के लिए  पिछे मिलेगा । बालिका तो नही कह सकूँगा, लेकिन  फिर  भी वह बहुत पहले की बात है ,किन्तु वह आज घटित  होती सी लगता है।जिस समय बस की व्यवस्था नही होती थी,अन्यत्र होती होंगी लेकिन  गाँवो में नही होती थी । और वैयक्तिक जो  मोटरगाडी  चलाते थे  उनके पास तो बस थे ही नही , तो वह  गाडी लेकर आते थे, तो उनके हाॅर्न भी ऐसे है ( हावभाव से 🎺 ) वह अलग टाइप के रहते थे,उसको सुनकरके  हम घड़ी में क्या बजे थे वह ज्ञान करते थे,उस समय किसिके हाथमें घड़ी भी नही  मिलती थी। और आज एक एक हाथ में दो दो घड़ीयाँ मिलती है, बंद या है क्या चालू है यह  उनको भी मालूम  नही लेकिन  फिर भी वह  सबके सामने देखते है। अब उस गाडी में क्या व्यवस्था थी,३०~१ बैठ जाते होंगे, किन्तु ५० से ज्यादा भर देते थे। ग्राहक थे वह भर देते थे फिर भी उसके उपरांत ऊपर  होता है ना ऊपर  भी टप  पर  भी बैठ गये जैसे बरात की गाडी, फिर भी जगह नही तो लटकने लगते थे चारो तरफ़। गाडी की क्षमता जो थी वह बाहर होगी धीरे धीरे चलने लगी इसीका नाम बरात की गाडी है।  लगभग इससे भी जोरदार उदाहरण यहाँ दिख रहा है।  यह सारी सारी महिलाए गाडी मे बैठ गयी और  कुछ ऊपर टप के ऊपर के पुरुष  लोग बैठ गये कुछ लोगो जगह ही नही मिली तो ऊपर  भी नीचे भी लटकाने  लगे ......

 

WhatsApp Image 2022-07-18 at 10.17.12 PM.jpeg

 

   २०\२५ वर्ष  पूर्व  में  निकलंक के और अकलंक के स्मरण के रुप में इस निकलंक भवन का निर्माण हुआ , इससे काम नही चलने वाला  है। आप लोग सोचो,यह तो एक प्रकार से किसी भी प्रकार  से व्यवस्था करके लोगो को  क्योंकि वर्षा का काल है,  सर्वज्ञा में दुसरा मंडप है ,वहाँ पर  जाना है। हम भगवान से प्रार्थना करते है,ये जो जनता आ रही है, कही यह भग न जाए क्योंकि वर्षा यदि होने लग जाए ( ☁️🌥️ आकाश की ओर देखते हुए) उनको कह रखा है, ये दूर से आए है इनको अभी  पानी की आवश्यकता नही, भोजन मे तो मिल जाऐगा पानी  किन्तु ऊपर से अभी नही, वह कहते फिर हम भक्ति कैसे करे । लेकिन  ध्यान  रखो कभी कभी  भक्ति मौन से भी  कि जाती है और इधर उधर की बाते नही करते है, नही तो हम बादलो को 🌧️🌦️  बता देंगे ऐसे करोगे तो निश्चिंत रुप से दंड मिलेगा तुमको ,हाँ भक्ति में कभी व्यवधान  नही करा करते । 
      
          तो इस प्रकार पहले साधगी की जीवन जिसो बोलना चाहिए,  वह भी गाडियाँ पानी के बाष्प   के ऊपर चलते थे, उसको तपाया जाता था,  फिर उसके उपरांत ठंड के दिनो में उन गाडिओंको  धक्के देना पडता था फिर वह गियर पकडती थी। आप लोगो की दशा भी ऐसी ही है, समय मिलता नही है, रविवार के दिन आ गये हो। नही महाराज  रविवार  पड गया,  यहाँ तो प्रतिदिन  रविवार पडता है, अभी चातुर्मास  पूर्ण होना बहुत  दूर है, लेकिन  एक सप्ताह  हो गया है।  यहाँ के उत्साह को,प्रसन्नता को भाव भक्ति को देखकरके  देव लोग भी तरस रहे है । हम क्या करे ? हम तो सबकुछ करने के लिए  तैयार है, लेकिन  हम तो आप  लोगो के लिए आहार  दान भी नही दे सकते । कही ऐसे तरसते होगे, और यहाँ के लोग उनको कहते है आप यहाँ से क्यों गये, ऊपर जाकर बैठ गये हो, वहाँ  पर कोई मुनि महाराज भी  नही आते है। ये हमारा  भाग्य है, यहाँ तो मुनिराजों  का यत्र तत्र विचरण होता  है।यहाँ के लोगो की भावना थी,देव भी यहाँ  पर अवश्य आते है रात में,  ऐसे चमत्कारिक यह *शिवपूरी* है, हाँ जैन भी बोलते है।

      हाँ तो  यहाँ पर जो   संरचना  मंदिर  की है उसको देखने से तो, बहुत  व्यवस्थित वहाॅ पर  जाना पडता है। हमने इस हफ्ते में कैसे दर्शन किया जाता है पार्श्वनाथ भगवान का उसके लिए  पूरे पूरे प्रशिक्षण ले चूकां हूँ, आप लोग भी वहाँ पर जाकरके प्रशिक्षण  ले सकते हो,हाँ जो व्यक्ति झुक नही सकता उसको झुका करके दर्शन हो जाता है।  जो घुटने टेक  नही सकता उसके लिए भी  कृपा करके वंदना कर देते है ।

 

इस प्रकार  तालीया बजाते समय सोच करके बजाओ मजा आएगा, ये तो जाते समय इस ढंग से होता है आते समय तो  और जबरदस्त कार्य होता है, चलना नही होता है छोटे बच्चे जैसे किसक  नही सकते, तो चलने वक्त भी होता है, या तो ऊपर जो है निश्चित  रुप से मस्तिष्क  को लगेगा या पिछे बार को लगाएगा ऐसे करके सब लोगो को दर्शन  होता है पार्श्वनाथ भगवान का।भीड को देखकर बहुत यहाँ पर व्यवस्था  नही हो पा रही है, यहाँ  के प्रबंधक यही के नही अन्यत्र  के  सभी लोग  सोच रहे यहाँ पर और अच्छी मात्रा मे आ जाए। उसके लिए   विशेष रुप से आप लोगो के लिए विचार किया, मन से कोशिश  किए,मन बहुत  जल्दी आपकी यह व्यवस्था करेंगे है यह हमारा कर्तव्य है। अनेक क्षेत्र  है,तीर्थ क्षेत्र  है और एक प्रकार  से मुक्ति के क्षेत्र  है भारतवर्ष में ,जब कभी भी यात्रासंघ  निकलता है , तो वहाँ अपना एक प्रकार से मार्ग बनाय देता है ,कहाँ कहाँ जाना,कहाँ कहाँ पर  रुकना, उसके बाद कहाँ जाना। और १०~२० दिन के वह यात्रा के लिए  निकलता हो,कभी कभी एक महिने के भी यात्रा के लिए  निकलते है । तो यहाँ पर शिरपूर  में एक प्रकार से यात्री आते है  लेकिन विशेष रुप से उनको यहाँ पर  व्यवस्थित  जगह  नही मिलने से  अब क्या करे,सब जगह एक प्रकारसे  बहुत  ही रेल के डिब्बे जो है ना  ,चाहे गर्मी का हो  चाहे वर्षा का हो,ठंड का हो कही का हो लेकिन  आप लोग समझते हो,पहले  से ही  रिजर्वेशन करना पडता है ? समझते है ,तब जाकरके  कही जगह मिलती है। और यह रिजर्वेशन क्या है ?  टिकट है ?  बोलो ? आरक्षण ?  यह आरक्षण भी  नही है, आरक्षण नही है टिकट के साथसाथ डबल खर्च  क्यो दे रहे हो बताओ ? सो स्पष्ट  होता है, बहुत व्यवस्था की कमी है, टिकट भी ले रहा है वो, और रिजर्वेशन भी कर देता है, यह जो है एक प्रकार  से गरीबो के लिए  ठीक नही है,यह  अमीरो का काम है,इनको कोई पूछनेवाला  है नही ।नीचे तो अवश्य आप  को पूछते है  तो,ऐसे स्थिती में गरीब लोग ट्रेन की यात्रा कैसे   कैसे बताओ  ?  वो रिजर्वेशन वाले वहाँ  पर बैठ जाते है  ,यह गरीब टिकट लेकर खडे हो जाते है ।  यह भी ठीक ही है खडे होने से भक्ति ज्यादा  अच्छी हो जाती है, बैठने वालो की भक्ति नही होती है । परिश्रम करना सिखो,कष्ट सहनशीलता, यह  आप  आगे दीक्षित होना चाहते है  तो यह पहले से ही प्रशिक्षण है।हाँ बैठकरके  नही, भोजन भी लेगे तो , कैसे लेंगे  महाराज, हाँ खडे होकरके, महाराज  हम भी खडे होकर के लेते है। लेते है  यह  एक प्रकार से मजबूरी है अथवा पश्चिमी  हवा का प्रभाव है, फिर भी आप लोग एक  हाथ से ही लेते है आहार ,है ना और हम ? दोनो हाथो से। बनानेवाले आप और दोनो हाथो से  हम खाते है। यह व्यवस्था है। यह सारे सारे इन चित्रो को देखने से बिंबोको  देखने से ज्ञात होता है  दिंगबर  अवस्था  मे खडे होकर के मुनि महाराज   आहार लेते  है और ऊपर से पुष्प वृष्टि  हो जाती है, देव लोग आहार   नही  कर सकते है लेकिन  आहार करते समय वे ऊपर से पुष्प  वृष्टि करते है और तांडव नृत्य  के द्वारा अपने भक्ति का प्रकट पूर्ण कर देते है।  और भगवान से प्रार्थना  करते है- की-- *नरकाया को सुरपती तरसे  सो दुर्लभ प्राणी*   यह दौलतराम  जी की छहढाला  मे लिखा गया है।

      वह व्यक्ति वहाँ पर गया ,  क्यो की  परीक्षा और देनी पड़ेगी उसको ।, वह  एकाध  विषय मे फेल हो गया अनुत्तीर्ण हो रहा तो  वहाँ से भक्ति  करते करते करते तरस रहा है कि, मुझे  वह रुप धारण करने का सौभाग्य  कब मिलेगा,, आहार देने का वह  सौभाग्य मुझे  कब मिलेगा।  और इस प्रकार, फिर भी वे देव लोग भक्ति करने के लिए( आते है ) ,यहाँ से  भक्ति करने  के लिए कोई भी  नही जाता है स्वर्ग, मरने के बाद  ही स्वर्ग जाता है। नही समझे  , खुद मरे बिना स्वर्ग  नही मिलता ।  यह है, किन्तु वहाँ से जो आते है ,इतने आनंद के साथ आते है,  इतने आनंद के साथ आते है, करोडो करोडो टोलियो  के साथ आते है, और समवसरण मे साक्षात भगवान का दर्शन करते है ।  और ऐसे क्षेत्रो के वंदना के लिए भी वे आते है ।

रात के बारा  बजे एकांत में जब आप लोग सो जाओगे ।उस समय भक्ति  करते  है। कही व्यक्तियों के मुख से सुना है  , कि वहाँ घुंगरुओं के आवाज आती है,करताल की आवाज  आती है, घंटीयों की, छुनछुन  घंटीयों की आवाज आती है ।यहाँ पर कौन हैं?  तो भगवान  है , भगवान है तो भक्त  भी आऐगा । ये पक्का  है। इसीलिए आप लोगों को चाहिए  ऐसे तीर्थों की रक्षा के साथ नये नये भक्तो के लिए भी इस प्रकार  की व्यवस्था करके इस मनुष्य जीवन की दुर्लभता को, इसका महत्व  समझ मे आना चाहिए। नही तो बाद में पश्चाताप करोगे। करना ,कराना और अनुमति  देना इन तीन बिंदूओ से हम भक्ति कर सकते है। कही लोग  स्वयं करते नही, करने के लिए  तो जाते है तो ,वहाँ गडबडी  हो जाती है ,लेकिन कराते रहते है,अनुमति देते रहते  है,प्रोत्साहित करते रहते है  ये सारे के सारे भावाभिव्यक्ति  हम लोगो की उनके प्रति समर्पित हो जाती है।  इसीलिए   आप  लोग वहाँ तीर्थों को करते करते  शिरपूर  मे भी आ जाते है यहाँ पर आकर  देखते है पार्श्वनाथ भगवान। 

 

     पार्श्वनाथ भगवान के जीवन के ऊपर  जब  कभी भी हम चित्रण सोचते है,या पढते है, लगता है कि वहाॅ फणादार जो की ऊपर उनके सिर के ऊपर ,  देखते है ,पार्श्वनाथ  भगवान के ऊपर   उपसर्ग   यह बहुत  अद्भुत घटना  है का यह पंचमहाल की देन है। अन्य कालो मे ऐसे नही होता और इस अवस्था मे  जब हम देखते है तो कितनी कठिन साधना, तपस्या थी उनकी ज्ञात होता है। कुछ  भी नही प्रताकार नही और   धरणेंद्र ने आकरके  उनके ऊपर जो उपसर्ग आ रहा था उसको   दूर किया।  ऐसे स्थान पर आप लोग आए हो,तो  थोडी भी व्यवस्था मे कमी  हो तो उसको  आप गौण  किया करो । और उस मूसी को देखो,कि फणा उठाकरके धरणेंद्रने अपने उपसर्ग  को दूर करने की अपेक्षा से भक्ति की अभिव्यक्तिकरण किया है । ऐसी भक्ति होती है तो ऐसी भक्ति होती है । तो इससे स्पष्ट  होता है अपने यहाँ,कष्ट सहिष्णुता, कष्ट को सहन करने की साधना बताई जाती है, और पार्श्वनाथ  भगवान के बिंब की स्थापना की हुई मिलती हैं। हजारो इस प्रकार  के बिंब जहाँ कही भी क्षेत्रो में जाते है प्राचीन काल से  वह बिंब आपको दर्शन  दे रहे है।उस समय के व्यक्तियो ने  भक्तो ने आगामी काल के विचित्र बदलाहट के कारण  को देखकर  के
आप लोगो के लिए  व्यवस्था किए  है, आप लोगो का कर्तव्य  है व्यवस्थित इन जिनबिंबो का दर्शन  करके समय समय पर  आनेवाले पिढियो  के लिए  इस संस्कार  अवसर प्राप्त करा देना  चाहिए।  

      मध्याह्ण मे  लिए मंडप में रखा है  बताते है,  यहाँ पर  हमारे पूर्वमें गत रविवार को चतुदर्शो के दिन हमारी स्थापना  हुई  थी,लेकिन इन लोगो ने सोचा कि, यहाँ स्थापना दिवस बहुत दुर्लभता  के साथ हमे मिला है इसलिए इन्होने सब लोगो को निमंत्रण दिया है। हमे  तो निमंत्रण नही दिया, क्योंकि निमंत्रण  से तो हम आते नही,फिर भी कह तो सकते है कि महाराज आप भी आओ ,लेकिन  हम तो पहले ही आए।  और एक सप्ताह के बाद यहाँ परल जनता प्रतिदिन , स्थापना  कलशों को लेकरके   जैसे देव लोग  घटाए लेकरके  आते है  उसी प्रकार यहाँ पर कलशो  जो घटाओ के घट भर भरके  लेकरके आए है।


बडे बडे नगरो से, महानगरो  से  जनता आई है। इनकी व्यवस्था मध्यह्ण  मे की गयी है।  अब की बार दिखाया कलशा तो  लगाकि
देव लोग भी चाहते होगे उनको, लेकिन  वह कलशा हम कोई  किसी  देवोको देगे नही । केवल धरती के लोग  भूमिगोचरी  है  उन्ही को हम  देकरके यह कार्य संपन्न  किया जाऐगा । बहुत  ही आनंददायक यह अवसर है मध्यह्ण मे ।

      आप लोग जाप प्रारंभ कर दो ,ताकी इसमे बाधा न आए । और आए हुए सारे निमंत्रित जो व्यक्ति है अपने अपने स्थान की ओर चले  जाए। यहाँ पर बैठ जाए तो पूरी व्यवस्था नही होगी।  और रविवार  लगाकर भी दिन भी आ जा ते है  तो भी काफी मिल जाऐगे। और कोई  लोग कहते है  ना रविवार के दिन मत आया करो, क्यों उस समय भिड रहती है,महाराज  जी का दर्शन   एकांत मे  तो होता ही नही है।  तो भैया  हम तो एकांत के पक्षवाले  नही है अनेकांत के पक्षवाले  है। इसीलिए  एकांत मे आप आना चाहो तो यहाँ नही आना पडेगा,ये प्रबंध होगा  ही नही। हम सोचते है  हम एकांत स्थान  में कुछ बैठ जाए हमारे कुछ बैठने के  पूर्व में  १०\२० लोग आकरर बैठ जाते है। ऐसा तो दर्शन  होता ही है।कही लोग हम लोग जाते है उस वक्त   ये देखो आज हमे पास से महाराज का दर्शन हो गया।  हाँ बिल्कुल, हम कहते है,किसिको मत कहिए हम पास से दर्शन  करके आए है, सभी लोग ऐसे ही करते  रहेंगे  इस प्रकार उनको इतनी खुशी होती है कि हमे इतने पास से दर्शन  हुआ। तो हम भी क्या करे सोचते है, हम भगवान से प्रार्थना करते है कि इनकी भावना पूर्ण होवै। आप लोगोकी तो दुकान चलेगी तो हमारा ठोक व्यापार चलेगा। उनकी  दुकान तो चलनी ही चाहिए। और टूटी  पूदीसी कुछ मतलब ,ही नही है।

    और जहाँ बैठे है,जो लोग नही आ पाते है  , सोचते होंगे,देखो तो भैया तो गये है ,ये लोग भी गये है वह लोग भी गये है, वो भी गये है  वौर हमे जाने का अवसर प्राप्त नही हुआ,  स्वास्थ्य  ठीक नही  रही इसीलिए उनको तो कम से कम वंदना  अच्छी हो जाए,आपसे भी ज्यादा पुण्य  भाव/ पुण्य अर्जन कर रहे है। हमारे यहाँ वस्तू का मूल्य होता है। यहाँ ऐसे वहाँ  ऐसे  मतलब नही होता है। छोटा भी लडका भक्ति कर सकता है, क्योंकि एकबार देखा था कुंडलपूर  मे  बडे बाबा के वहाँ। एक लडका था दो लड्डू दिए थे एक ऊपर के जेब मे  एक लड्डू रखा है ,नही समझे और वह खाने के लिए  दिया गया है और एक हाथ में  दिया गया लेकिन  कहा गया है,जब तक ये लड्डू  बडे बाबा को चढायेगे नही तब तक उसकी  (जेब में रखी हुई  लड्डू की ओर) देखना  नही, तो वह लडका उस की ओर देखता नही,खाता नही क्योकि  ये चढाने का है,खाने का नही ये भी तो भक्ति है, है ना। ऐसी भक्ति  बच्चो मे होती है, होती है कि नही!  आप तो बडे हो गये हो।बच्चो के मन मे भी इस प्रकार का भाव मिलते है।

 

      इस प्रकार  यह जैन धर्म  अहिंसा  धर्म की विशेषता को लेकर भारतवर्ष मे यत्र तत्र फैला है । और और इसको विशेषता रुप आप लोग से अहिंसा धर्म  का पालन करके यह आपको कार्य करना है,और यहां पर विशेष  रुप से कहा है केवल आप तक सिमित न रहे अडोस पड़ोस  में  भी इसका प्रभाव अवश्य दिखना चाहिए। आप लोगोको, उनको भी इस प्रकार  का अवसर प्राप्त  कराओ क्यो कि पहले ऐसा ही होता था ,अहिंसा धर्म  एक प्रकार  से व्यापक धर्म  है। एक ही धर्म  है ,इसको सभी लोग मानते है और  उसका अवसर के अनुसार  उपयोग भी करते है । हम इसको  वह कभी भूले नही यह  व्यक्तिगत धर्म  नही है,  किन्तु यह सार्वजनिक भी धर्म  है  लेकिन  उसके साथ साथ धर्म  है नीव अवश्य  रहे है,अहिंसा का अंशिक रुप से पालन  करेंगे तो भी इसका स्वाद या फल  अवश्य  ले सकते है।

*अहिंसा परमो  धर्म की जय हो।* 🙏🙏🙏🙏🙏

 

Link to comment
Share on other sites

Create an account or sign in to comment

You need to be a member in order to leave a comment

Create an account

Sign up for a new account in our community. It's easy!

Register a new account

Sign in

Already have an account? Sign in here.

Sign In Now
×
×
  • Create New...