Sanyog Jagati Posted June 26, 2020 Report Share Posted June 26, 2020 (edited) *देश का सबसे मूल्यवान खजाना होता है युवा* :- *मुनि श्री विमल सागर जी महाराज* सर्वश्रेष्ठ साधक आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी महा मुनिराज के आज्ञानुवर्ती शिष्य मुनि श्री विमल सागर जी महाराज (ससंघ) -श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर चौबीसी जिनालय बड़ी बजरिया बीना जिला सागर (मध्य प्रदेश) में विराजमान है। मुनि श्री भावसागर जी ने मुनि दीक्षा दिवस पर कहा कि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का 53 वा दीक्षा दिवस है । उन्होंने निर्दोष ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करके एक महान कार्य किया है। देश का सबसे बहुमूल्य खजाना होता है युवा , युवा शक्ति देश के लिए अमूल्य निधि के समान है। युवावस्था जीवन का सबसे बेहतर समय है। भारत में 15 से 30 वर्ष के बालक को युवा माना जाता है। देश में नेतृत्व हमेशा लगभग 1% लोग करते हैं 90% लोग उन 1% लोगों की मुख्य शक्ति होते हैं तथा 80% लोग इन 10% लोगों का अनुसरण करते हैं । ऐ मेरे जवानों असंभव को संभव करने की अपार क्षमता सामर्थ व ऊर्जा हमारे भीतर समाहित है । बाल के भाल पर अपनी शक्ति साहस ब शौर्य से नया इतिहास लिखो । मैं अकेला क्या कर सकता हूं इसके बजाय हमेशा यह सोचे कि मैं क्या नहीं कर सकता । दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं सबl सब कुछ संभव है । यही जीवन देश, धर्म, समाज सेवा के लिए मिला है ! आचार्य श्री जी ने भी ऐसा ही किया है। आचार्य श्री की भावना है कि इंडिया को भारत बोला जाए, हिंदी भाषा को विशेष महत्व दिया जाए गायों की रक्षा की जाए स्वदेशी वस्तुओं को महत्त्व दिया जाय। सभी लोगों को पूर्ण आयु प्राप्त हो जाए इसी उनकी भावना है। कोरोना अतिशीघ्र वापस चला जाए ऐसी उनकी भावना है लोकनतिक देव बन कर एक भव में मोक्ष प्राप्त करें । दीक्षा का अर्थ होता है इंद्रियों का दमन। एड्रेस और ड्रेस का बदल जाना और मंच और लंच का बदल जाना। आचार्य श्री तीर्थंकर बनने की ओर अग्रसर हैं । आचार्य श्री एवं सभी साधु बोल रहे हैं कि आप सभी शासन, प्रशासन के नियमों का पालन करें , सोशल डिस्टेंस रखें , मास्क लगाएं धार्मिक क्रियाएं स्थिति ,परिस्थिति को देखकर करें , आचार्य श्री को गरीब ,अमीर सभी की चिंता रहती है। जो प्रभु का घर( मंदिर )बनाता है उसका घर भी अवश्य बन जाता है मुनि श्री अचल सागर जी ने कहा कि गुरु के बारे में बोलने को हमारे पास शब्द नहीं है । उनकी भक्ति करना सबके बस की बात नहीं है । आचार्य श्री पंचम काल के सर्वश्रेष्ठ साधक हैं । गुरु के उपकार को कभी भुलाया नहीं जा सकता प्राचीन आचार्यों का इतिहास में महत्व है । आचार्य श्री की निर्दोष चर्या की परीक्षा एक विद्वान ने चुपचाप की लेकिन कुछ भी दोष नजर नहीं आया था। आचार्य श्री की असाधारण वाणी है वाक् सिद्धि है उनको । उनका आचरण असाधारण है गुरु अचेतन को चेतन धाम बनाते हैं। मूक माटी महाकाव्य लिखना साधारण बात नहीं है । ज्ञात हो कि मूक माटी पर पीएचडी डी लिट , एम आदि हुई है एवं देश के प्रमुख 283 विद्वानों ने अपनी समीक्षाएं लिखीं हैं आचार्य श्री के दर्शन हेतु जबलपुर में एक मुख्यमंत्री का आना हुआ लेकिन बहुत देर बैठने के बाद भी आचार्य श्री कुछ पढ़ रहे थे तो उन्होंने चर्चा नहीं की और बिना चर्चा के वापस जाना पड़ा। आज आचार्य श्री का ऑरा नापा तो सर्वाधिक निकला । आचार्य श्री ने जैन धर्म को बहुत आगे बढ़ाया है। आचार्य श्री की महिमा का वर्णन करना हर किसी के बस की बात नहीं है। मुनि श्री अनंत सागर जी ने गुरु के चरणों में भावांजलि अर्पित करते हुए बताया कि आचार्य श्री विद्यासागर जी का दीक्षा योग है जिसमें विवाह के बाद दीक्षा वाली व्यवस्था नहीं है। आचार्य श्री के समय के मिनटो की कीमत होती है। वह निराले संत है । ब्रह्मचारी अवस्था में गुरु ज्ञान सागर जी महाराज से मिलने की इतनी उत्कंठा थी कि भूख प्यास भी भूल गए और 2 दिन के उपवास हो गए थे। गर्मी में भी रात्रि कठिनता से व्यतीत हुई थी । पूज्य ज्ञान सागर जी महाराज दीक्षा के पूर्व लोगों से परीक्षण करवाते थे कि चरिया में यह सही है या नहीं, ज्ञान सागर जी महाराज ज्योतिष के ज्ञाता थे । उन्होंने पहले ही ब्रह्मचारी अवस्था में देख लिया था कि यह विद्याधर आगे मुनि विद्यासागर बनकर पूरी दुनिया में धर्म का डंका बजाएगा । बिनोली में 19 हाथी थे ।आचार्य श्री की अद्भुत दीक्षा हुई थी। समता की पराकाष्ठा आश्री विद्यासागर जी में देखी जाती है ।जो दीक्षा का विरोध कर रहे थे उन्हीं के यहां उपवास की पारणा हुई थी ।पारणा में मुनि श्री विद्यासागर जी ऐसे लग रहे थे। जैसे बरसों के साधक हो। पूज्य ज्ञान सागर जी ने कहा था कि यह काया 5 वर्ष टिक गई तो हम बताएंगे कि मुनि विद्यासागर क्या व्यक्तित्व है। विश्व प्रसिद्ध योगाचार्य ने जबलपुर में कहा था, कि मैंने अनेकों संत देखे हैं लेकिन आचार्य श्री विद्यासागर जी निर्विवाद संत है । मुनि श्री विमल सागर जी ने गुरु महिमा का वर्णन करते हुए बताया कि उनके गुरु ने कहा था कि मुनि विद्यासागर महाराज की चरिया चतुर्थ कालीन है । उनकी ध्यान अवस्था को देखते हैं तो आश्चर्य कारी चरिया लगती है ।मुनि श्री अचल सागर जी ने विभिन्न आचार्यों के नाम लिए हैं। इस कलिकाल में एक ही संघ है जिसमें प्रायः सभी दीक्षित साधु बाल ब्रह्मचारी हैं। इन विषयों के बीच में दिगंबरतव को सुरक्षित रखना अतिशय कारी है ।यथार्थ रूप का दर्शन पुण्य कारी होता है। वह बिना नमक, मीठे ,हरे फलों के बिना भी ऐसे भोजन करते हैं जैसे 56 तरह के भोजन कर रहे हो । उनकी अंतरंग की शुद्धि से सभी अशुद्धियां दूर हो जाती हैं । गुरुदेव अपने गुरुदेव के प्रति कितने समर्पित थे इससे बड़ा गुरु सेवा का उदाहरण देखने को नहीं मिलता है ।गुरुदेव के प्रति निष्ठा ,भक्ति, सेवा का फल जो वह आगे बढ़ते जा रहे हैं। मुनि श्री भाव सागर जी की अच्छी भावना रहती है वह कह रहे हैं कि सभी ब्रह्मचारी , ब्रह्मचारिणीयों की दीक्षा आचार्य श्री के कर कमलों से हो जाए ।सर्वश्रेष्ठ मंत्र विश्वास है। उनकी छवि मंत्र का काम कर जाती है। आपको कुछ भी नहीं आता है तो भी तर जाओगे लेकिन विश्वास रखो। आचार्य श्री ने कहा था कि अपने हृदय में णमोकार मंत्र को रखना तो कल्याण हो जाएगा। संतोष से बड़ा कोई धन नहीं होता है। जब दौलत के पीछे भागते थे तो वह दूर भागती थी लेकिन दौलत से दूर हो गए तो वह पीछे भागती है । वैराग्य ही परम भाग्य है। हम सभी का सौभाग्य है ऐसे महान गुरु मिले हैं । Edited June 26, 2020 by Sanyog Jagati Link to comment Share on other sites More sharing options...
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