Sanyog Jagati Posted August 20, 2019 Report Share Posted August 20, 2019 करेली 20/08 /2019 *समाधि को मृत्यु महोत्सव वीर मरण कहते हैं - मुनि श्री* सुधार की प्रेरणा देने वाली सुधार मति माताजी को दी गयी श्रद्धांजलि करेली जिला - नरसिंहपुर मध्यप्रदेश में राष्ट्रहित चिंतक व सर्वश्रेष्ठ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आज्ञानुवर्ती शिष्य मुनि श्री विमलसागर जी,मुनि श्री अनन्तसागर जी,मुनि श्री धर्मसागर जी,मुनि श्री अचलसागर जी व मुनि श्री भाव सागर जी के ससंघ सानिध्य में श्री महावीर दिगंबर जैन बड़ा मंदिर सुभाष मैदान में श्रद्धांजली सभा हुई । जिस दौरान माता जी से जुड़े संस्मरणों को याद किया गया । इस अवसर पर धर्म सभा का संबोधन महाराज श्री के मुखारबिंद से हुआ जिसमें संघ नायक मुनि श्री विमल सागर जी ने जैन साधुओं की सल्लेखना की महिमा बताते हुए कुछ ही दिनों पूर्व करेली में ग्रीष्म कालीन वाचना करने वाली आर्यिका सुधारमति माताजी की साधना के बारे में बताया... वही मुनि श्री भाव सागर जी ने अपने संबोधन के दौरान कहा कि समाधि मरण व सल्लेखना को शास्त्रों में मृत्यु महोत्सव व वीरमरण कहा गया है । जन्म का महोत्सव जग मनाता है पर मृत्यु का महोत्सव बिरले लोग ही मनाते हैं । आयु का क्षय मरण कहा गया है । मृत्यु को शरीर धारियों की प्रकृति कहा गया है पर जो समाधि मरण करता है वह भव्य आत्मा कम से कम 2-3 भवों के लिए व अधिक से अधिक सात से आठ भव में मुक्ति प्राप्त करने वाला जीव बन जाता है । कषाय और शरीर को कृष करना सल्लेखना कहलाता है । शरीर में जब कोई रोग हो जाता है या कोई संकट आदि आ जाता है और जीने की कोई राह नजर नही आती तो शरीर से ममत्व का त्याग कर साधक,सल्लेखना धारण करता है । जिस प्रकार कोई शरीर को डोनेट करता है इसी प्रकार अपनी आत्मा के कल्याण के लिए शरीर के द्वारा सल्लेखना धारण की जाती है । जिस प्रकार चोर, संपत्ति चुरा लेता है तो पुण्य का अर्जन नहीं होता है लेकिन दान या त्याग करने पर पुण्य का अर्जन होता है,इसी प्रकार सल्लेखना में होता है शरीर तो छूटना ही है लेकिन आत्मा को सुरक्षित करने के लिए सल्लेखना ली जाती है । दीक्षा सल्लेखना की साधना के लिए ली जाती है । क्रमशः अन्न-जल का त्याग,निर्जल उपवास की साधना की जाती है । आर्यिका श्री सुधार मति माताजी ने भी समाधि पूर्वक मरण को प्राप्त किया है । वह सहज, सरल थी और हमारी यही भावना है कि सभी पिच्छीधारी साधुओं का समाधि मरण अनुकूलता पूर्वक हो जिससे मृत्यु पर विजय प्राप्त हो । जिस प्रकार देश की सुरक्षा करते हुए जवान शहीद हो जाते हैं उसी प्रकार साधक साधना करते हुए.... पंच नमस्कार मंत्र का स्मरण करते हुए.... भगवान की भक्ति करते हुए.... अंतिम श्वास लेता है । गौरतलब है कि आर्यिका श्री सुधार मति माता जी का वर्तमान चातुर्मास खजुराहो में आर्यिका श्री अनन्तमती माता जी के साथ जारी था । माता श्री सुधार मति जी का पिछले 17 अगस्त को शाम करीब 6 बजे खजुराहो में समाधि मरण हुआ था । उनका पिछले तीन-चार दिन से स्वास्थ्य अनुकूल नहीं था । उनका जन्म 4 जनवरी 1964 को अशोकनगर मध्यप्रदेश में हुआ था,उन्होंने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से ब्रह्मचारी व्रत 16 जनवरी 1991 को मुक्तागिरी तीर्थ क्षेत्र में धारण किया था और 6 जून 1997 नेमावर सिद्ध क्षेत्र देवास मध्यप्रदेश में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज से दीक्षा ग्रहण की थी । ज्ञात हो कि इसी साल करेली में 19 मार्च से 20 जून तक ग्रीष्मकालीन प्रवास के दौरान लगभग 3 माह तक माता जी करेली में रहकर श्रद्धलुओं को धर्म का मर्म बताती रहीं । खजुराहो में 19 अगस्त को प्रातः काल अंतिम संस्कार किया गया । इसी क्रम में पंचायत कमेटी, चातुर्मास कमेटी, मंदिर निर्माण कमेटी, महिला मंडल, नवयुवक मंडल, बालिका मंडल, पाठशाला परिवार करेली के द्वारा श्रद्धांजलि दी गई साथ ही मुकेश जैन ने बताया कि माताजी ने हमें कुछ कविताएं लिख कर दी थी जो हमारे पास आज भी हैं। विजय जैन ने बताया कि माताजी का हमें विशेष आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। रोशनी जैन ने कहा कि हमारे लिए माताजी ने बहुत कुछ सिखाया है उनके उपकारों को हम भूल नहीं सकते। ब्रह्मचारिणी मोना दीदी ने कहा कि सुधार मति माताजी के अनंत उपकार थे। माताजी हमेशा हमें समझाती रहती थी। वह सरल स्वभावी थी और अश्रुपूरित नेत्रों से सभी जन की आराध्य माता श्री को श्रद्धासुमन अर्पित किए गए । Link to comment Share on other sites More sharing options...
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