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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

ग्रन्थो को सुनने से भी कई गुना लाभ होता है - मुनि श्री विमल सागर जी


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*दमोह 07-06-2019*

*ग्रन्थो को सुनने से भी कई गुना लाभ होता है - मुनि श्री विमल सागर जी*

*(श्रुतपंचमी पर्व बड़ी धूम धाम से मनाया गया )*

 दमोह ( मध्यप्रदेश)  में *सर्व श्रेष्ठ साधक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आज्ञा अनुवर्ती शिष्य मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ससंघ के सानिध्य में श्री दिगंबर जैन नन्हे  मंदिर दमोह में  7 जून दिन शुक्रवार को *श्रुतपंचमी ज्ञान महामहोत्सव*  संपन्न हुआ। जिसमें 2000 वर्ष प्राचीन शास्त्रों की महापूजा हुई। प्रातः  देव , शास्त्र , गुरु की शोभायात्रा निकाली गई फिर श्री जी का अभिषेक हुआ श्रुतस्कन्ध का अभिषेक दमोह नगर के इतिहास में प्रथम बार हुआ। बहुत सारी महिलाएं सिर पर शास्त्र रखकर शोभायात्रा मे चल रही थी और बाद में शास्त्र अर्पण भी किया पुरुषो ने भी शास्त्र अर्पण किया षटखंडागम , जयधवला , धवला , महाबंध आदि ग्रंथो की महापूजन हुई शास्त्र लकी ड्रा योजना का ड्रा निकाला गया जिसमे प्रथम , द्वितीय , तृतीय एवं सांत्वना पुरस्कार का चयन हुआ पीतल की धातु में 24×36 साइज में श्रुतस्कन्ध एव आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के चित्र का विमोचन सुधीर सिंघई , मनीष मलैया , श्रेयांश सराफ , अंकुश बनवार आशीष गांगरा ,सुनील वेजीटेरियन , संजीव शाकाहारी , प्रवीण (महावीर ट्रांसपोर्ट) ,  रोहन कौशल आदि ने किया। धर्मसभा को संबोधित करते हुए  मुनिश्री विमलसागर जी ने कहा कि यह श्रुत की परंपरा श्री आदिनाथ जी के समय से ज्ञान की धारा के रूप में निरंतर चल रही है।आचार्यो ने सोचा यदि ग्रंथों को लिपिबद्ध नहीं कराएंगे तो यह ज्ञान समाप्त हो जाएगा। उन्होंने कहा था श्रुत देवता जयवंत हो। उन्होंने षटखंडागम ग्रंथ का अध्ययन करवाया था। जब ग्रंथों की लेखन की पूर्णता हुई तो उन मुनिराजों और श्रुत  की पूजा की गई। हमें भी सौभाग्य प्राप्त हुआ कि गुरुदेव के द्वारा दीक्षा मिली और उसके बाद गुरुदेव के द्वारा षटखंडागम की सातवी पुस्तक को पढ़ने और सुनने का सौभाग्य मिला गुरुजी ने कहा था कि यह महान ग्रन्थ है इसको सुनने से भी असंख्यात गुनी कर्मो की निर्जरा  में कारण है। हाथ जोड़कर विनय के साथ सुनते जाओ।  कालांतर में सब कुछ आ जाता है। बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी णमोकार मंत्र पढ़ते हैं। यह षटखंडागम ग्रंथ में मंगलाचरण के रूप में है णमोकार मंत्र। यह मंगलाचरण अधूरा नहीं है पूर्ण है। ओंमकार ध्वनि में 11अंग 14 पूर्व द्वादशांग गर्भित होता है। धवला ग्रन्थ में आया है कि दुनिया में यदि कोई संपदा है तो वह है गाय और दूसरा अर्थ है इस दुनिया में यदि कोई अद्वितीय संपदा है तो वह है जिनवाणी। चारो अनुयोगों को मेरा नमस्कार हो। जो इनका पान करता है उसकी सम्यक बुद्धि चलती है। जिसको जन्म के समय णमोकार मंत्र सुनने मिल जाए उसका जीवन सफल हो जाता है। जिसको अंत समय णमोकार मंत्र सुनने मिल जाए उसके कई भव सफल हो जाते हैं। इस जिनवाणी की पूजा भक्ति , विनय देव और गुरु की तरह करना चाहिए। देव शास्त्र गुरु की विनय से तप होता है। जिनवाणी की सुरक्षा का दायित्व आपके और हमारे ऊपर है। घर में एक स्थान जिनवाणी के लिए होना चाहिए आप चाहे तो रजत , स्वर्ण ,ताम्रपत्र , पीतल आदि  धातु पर भी जिनवाणी को उत्क्रीण  करवा सकते है। यह ताम्रपत्र ग्रन्थ मंदिर में विराजमान करवाएं जिससे हजारों वर्ष तक सुरक्षित रह सकें। यह ताम्रपत्र पंचम काल के अंत तक सुरक्षित रहेंगे। प्रत्येक मंदिर में ग्रंथालय होना चाहिए। जिनको सुनाई भी नहीं देता है लेकिन शास्त्र सभा में बैठते हैं तो वह कहते हैं कानो में कुछ गुंजयमान होता है। उससे मुझे संतोष प्राप्त होता है। कार्यक्रम का संचालन पंडित डॉ. अभिषेक आशीष शास्त्री सगरा ने किया और कमेटी ने उनका सम्मान किया। यह कार्यक्रम शाकाहार उपासना परिसंघ ने आयोजित किया था।पंचायत कमेटी और सकल दिगम्बर जैन समाज  का सहयोग रहा। द्रव्य अर्पण करने का सौभाग्य महिला मंडल पलंदी जैन मंदिर  को प्राप्त हुआ।

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