Sanyog Jagati Posted April 28, 2019 Report Share Posted April 28, 2019 *दमोह 27-04-2019* *दमोह में मुनि श्री को श्रद्धांजलि दी गई* दमोह ( मध्यप्रदेश) में *सर्वश्रेष्ठ साधक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ससंघ के सानिध्य में श्री दिगंबर जैन नन्हे मंदिर दमोह में 27 अप्रैल को प्रातः काल श्रद्वाजलि सभा हुई ।* मुनि श्री पुष्पदंत सागर जी महाराज को सभी ने श्रद्वाजलि दी विमल लहरी ने कहा कि मुनि श्री पुष्पदंत सागर जी कई बार दमोह आये है जो देह साधना करते है उस देह को सभी तरसते है। उन्हें इस युग के महावीर आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के द्वारा दीक्षा लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ सभी की भावना होती है कि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से दीक्षा प्राप्त करे। कुंडलपुर अध्य्क्ष संतोष सिंघई जी ने कहा कि मुनिश्री से मेरा बहुत जुड़ाव रहा जैन समाज दमोह अध्य्क्ष सुधीर सिंघई जी ने मुनिश्री को श्रद्वाजलि अर्पित की। डॉ. पंडित अभिषेक जी ने कहा कि मुनिश्री का शाश्वत भूमि पर अंतिम श्वास लेना विशेष है *मुनिश्री भावसागर जी ने कहा कि* जैन धर्म में समाधी मरण सल्लेखना को वीर मरण कहा है मृत्यु महोत्सव भी कहा गया है मुनि श्री का जन्म 20 अप्रैल और मुनि दीक्षा 22 अप्रैल और समाधी 25 अप्रैल को हुई। वह उपवास अधिक करते थे वह कठिन लगते थे लेकिन सरल थे समाज सुधार के लिए वह कड़क शब्द प्रयोग करते थे उनके चरणों में भावांजलि अर्पित करते है। *मुनिश्री अचलसागर जी ने कहा कि* जीवन में मृत्यु आती है और कुछ संदेश देकर जाती है। लाखो जीव प्रतिदिन मरण कर रहे है लेकिन सल्लेखना पूर्वक मरण करना महत्वपूर्ण है। यदि हमें जल्दी से जल्दी मोक्ष की प्राप्ति करना है तो सल्लेखना पूर्वक मरण करना होगा । जिसने कषाय को कृस कर लिया उसकी सल्लेखना अच्छी होती है। मुनिश्री से हमें अपनत्व मिला था। चारित्र की यूनिवर्सिटी आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज है उनकी चर्या में कोई भी त्रुटि नजर नहीं आती है । हम उनके चरणों में विनयांजलि अर्पित करते हैं। *मुनिश्री अनंतसागर जी ने कहा कि* आचार्यो ने अनेक ग्रंथों में सल्लेखना का वर्णन किया है। भगवती आराधना ग्रंथ में प्रमुखता से सल्लेखना का वर्णन है। चंद मिनटों में कब जीवन समाप्त हो जाए पता नहीं। अचानक कोई भी स्थिति घटित हो सकती है। संक्षेप सल्लेखना भी होती है, जब अचानक कोई घटना घटित होती है। मुनि श्री के साथ अचानक यह घटना घटित हुई। हम लोग ग्रीष्मकालीन में दमोह में रहे थे। 20 वर्ष का मुनि जीवन व्यतीत किया। ऐसा सिद्धक्षेत्र श्री सम्मेद शिखरजी जो शाश्वत भूमि है वहां उनका मरण हुआ है, निश्चित रूप से कल्याणकारी है। हम उनके चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। *मुनि श्री विमल सागर जी ने कहा कि पुष्पदंत सागर जी की वाणी में कठिनता थी, उससे ज्यादा चर्या में कठिनता थी। धर्म रूपी खुशबू को यत्र तत्र बिखेरते रहे। हम उनको प्रिंस ऑफ बुढ़ार* कहते थे।* उन्होंने मुनियों की भी बहुत सेवा की, हमारा संघ शाहपुर में मुनि श्री पुष्पदंत सागर जी का हो गया था। हमारा हृदय उनसे मिलता था। उनकी खबर आई थी कि श्री सम्मेद शिखर जी जा रहे हैं आप भी चलो। मेरी भी भावना है कि संयम के साथ पैदल चलकर जाये। जिस प्रकार मेंढक पहले समोसरण में पहुंच गया था वैसे ही उनकी भी यात्रा पूर्ण हो गई। जब संघ के साधु का समाधि मरण होता है, तो उपवास करना होता है, तो हमने सोचा कर ही लो क्योंकि जीवन का भरोसा नहीं है। संयम के साथ मरण हो गया मुनि श्री का। हमें संयम ग्रहण करने में शीघ्रता करना चाहिए। Link to comment Share on other sites More sharing options...
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