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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

मानवपन नपा तुला होना चाहिये


संयम स्वर्ण महोत्सव

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मानवपन नपा तुला होना चाहिये

 

मनुष्य जीवन पानी की तरह होता है। पानी बहता न होकर अगर एक ही जगह पड़ा रहे तो सड़ जाये। हां, वही बहता होकर भी बगल के दोनों तटों को तोड़-फोड़ कर इधर-उधर तितर बितर हो जाये तो भी शीघ्र ही नष्ट हो रहे। मनुष्य भी निकम्मा हो कर पड़ा रहे तो शोभा नहीं पा सकता। उसे भी कुछ न कुछ करते ही रहना चाहिये। उचितार्जन और त्यागरूप दोनों तटों के बीच में होकर नदी की भांति बहते रहना चाहिये। यह तो मानी हुई बात है कि खाने के लिये कमाना भी पड़ता ही है परन्तु कोई यदि विष ही कमाने लगे और उसे ही खाने लगे तो मरेगा ही, जीवित कैसे रह सकेगा।

 

अत: विष का कमाना और खाना छोड़कर इस तरह से कमाया खाया जाय जिससे कि जीवित रहा जा सके। मतलब यह कि कमाते खाते हुए मनुष्य को भी कम से कम इस बात का ध्यान तो रखना ही चाहिये कि ऐसा करने में उसकी आत्मा प्रत्युत तामसता की ओर तो नहीं लुढ़कती जा रही है? बल्कि प्रशंसा योग्य बात तो यही कही जावेगी कि कमाना खाना आदि हमारे सभी काम हमें सात्विकता की ओर बढ़ा ले जाने वाले होने चाहिये। हमारे भारत देश के वर्तमान समय के नेता श्रीमान बिनोबा भावे महाशय अपनी बुढापे की अवस्था में भी लोगों को खेती का महत्व बताने के लिये स्वयं कार्य करते थे, उसमें उत्पन्न हुए अन्न से निर्वाह करना कर्तव्य समझ कर सादगी से अपना जीवन बिता रहे थे। अगर वे बैठना चाहते तो उनके लिये मोटरों पर मोटरें आकर खड़ी हो सकती थीं मगर फिर भी उनहें जहां जाना होता है पैदल ही जाते थे। वल्लभ भाई पटेल एक रोज अपने कमरे में बैठे हुए कुछ आगन्तुक लोगों से आवश्यक बातें कर रहे थे। इतने में समय हो जाने पर वल्लभ भाई पटेल साहब की लड़की चाय लेकर आई जिसकी कि साड़ी कई जगह से फटी और सिली हुयी थी। अतः उन आगन्तुकों में से एक बोल उठा कि बहिन जी आप इस प्रकार फटी हुई साड़ी कैसे पहन रही हैं? जवाब मिला नई साड़ी किसकी कहां से ले आऊँ? आगन्तुक ने कहा कि बहिनजी! आप यह क्या कह रही हैं? कुछ समझ में नहीं आता।

 

आप कहें तो कि साड़ी क्या आवे बल्कि यहां आकर साड़ियों की टाल लग सकती है। इस पर बहिनजी तो क्या बोलती ! सुना अनसुना कर चली गयी। पीछे से पटेल साहब ने कहा कि हमारे यहां हाथ से सूत काता जाता है और उसका हाथ से बुना हुआ कपड़ा ही काम में लिया जाता है। वह इतना ही बन पाता है जिससे कि सारे कटम्ब का काम किफायतसारी के साथ में चला लिया जासके। ऐसा सनकर आगन्तुक महाशय दंग रह गया। सोचने लगा कि ओह। ऐसा रईस घराने का ऐसा रहन रहन। घर में मनचाही चीजें होते हुए भी सिर्फ सादा खाना और सादा पहिनना और सब कांग्रेस के लिये, पदार्थ जनता की सेवा के लिये। इसी को कहते हैं अमीरी में गरीबी का अनुभव करते हुए रहना। मानव जीवन हो तो ऐसा ही संतोषमय नपा-तुला होना चाहिये। फैशनबाजी में फंसकर मानव जीवन को बरबाद करना तो अमृत को पैर धाने में खोना है।

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