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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

अनर्थदण्ड के प्रकार


संयम स्वर्ण महोत्सव

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अनर्थदण्ड के प्रकार

 

बात ही बात में यदि ऐसा कहा जाता है कि देखो हमारे भारत वर्ष में गेहूं बीस रुपये मन है और सोना सौ रुपये तोले से बिक रहा है परन्तु हम से पन्द्रह बीस कोस दूर पर ही पाकिस्तान आ जाता है जहां कि गेहूं तीस रुपये मन में बिक रहे हैं तो सोना पचहत्तर रुपये तोला पर मिल जाता है। यदि कोई भी व्यक्ति यहां से वहां तक यातायात की दक्षता प्राप्त कर ले तो उसे कितना लाभ हो। इस बात को सुनते ही कार-व्यापार करने वाले का या किसान को सहसा अनुचित प्रोत्साहन मिल जाता है जिससे कि वह ऐसा करने में प्रवृत्त होकर दोनों देशों में परस्पर विप्लव करने वाला बन सकता है, अत: कथन पापोदश नाम के अनर्थदण्ड में गिना जाता है। सट्टा फटका करने वालों को लक्ष्य करके तेजी, मन्दी बताना भी इसी में सम्मिलित होता है।

 

। छुरी, कटारी, बरछी, तलवार वगैरह हथियार बना कर हिंसक पारधी सांसी, बावरिया आदिको देना सो हिंसा दान नाम का अनर्थदण्ड है। क्योंकि ऐसा करने से वे लोग सहज में ही प्राणियों को मारने लग जा सकते हैं। कसाई, खटीक, कलार, जुवारी आदि को उधार देना भी इसी में गिना जा सकता है। | बेमतलब के बुरे विचारों को अपने मन में स्थान देना, किसी की हार और किसी की जीत हो जाने आदि के बार में सोचते रहना; मान लो कि आप की जीत हो जाने आदि के बारे में सोचते रहना; मान लो कि आप घूमने को निकले, रास्ते में दो मल्लो की परस्पर कुस्ती होती देख कर खड़े रह गये और मन में कहने लगे कि इसमें से यह लाल लंगोट वाला जीतेगा और पीली लंगोटी वाला हारेगा। अब संयोगवश पीली लंगोटी वाले ने उसे पछाड़ लगा दी तो आपके मन को आघात पहुंचेगा। कहोगे कि अरे यह तो उल्टा होने लग रहा है। इत्यादि रूप से व्यर्थ की मन की चपलनता का नाम अपध्यान अनर्थदण्ड है।

 

जिन बातों में फंस कर मन खुदगर्जी को अपना सकता हो, ऐसी बातों के पढ़ने-सुनने में दिलचस्पी लेना दु:क्षुति नाम का अनर्थ दण्ड है। जल वगैरह किसी भी चीज को व्यर्थ बरबाद करना प्रमादचर्या नाम का अनर्थदण्ड है। जैसे कि आप जा रहे हैं, चलते-चलते पानी की जरूरत हो गई तो सड़क पर की नल को खोल कर जितना पानी चाहिये ले लिया किन्तु जाते समय नल को खुला छोड़ गये जिससे पानी बिखरता ही रहा। गर्मी का मौसम है, रेलगाड़ी में सफर कर रहे हैं बिजली का पंखा लगा हुआ है, हवा खाने के लिये खोल लिया, स्टेशन आया, आप लापरवाही से उतर पड़े, पंखे को खुला रहने दिया यद्यपि डिब्बे में और कोई भी नहीं बैठा है तो पंखा व्यर्थ ही चलता रहेगा इसका कुछ विचार नहीं किया। आप एक गांव से दूसरे गांव को जारहे हैं। रास्ते के इधर उधर घास खड़ी है किन्तु रास्ता साफ है फिर भी आप घास के ऊपर से उसे कुचलते हुए जा रहे हैं, इसका अर्थ है कि आप लापरवाही से पशुओं की खुराक को बरबाद कर रहे हैं। इत्यादि सब प्रमोदचर्या नाम का अनर्थदण्ड कहलाता है।

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