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अन्याय के धन का दुष्परिणाम


संयम स्वर्ण महोत्सव

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अन्याय के धन का दुष्परिणाम

 

एक दर्जी के दो लड़के थे जो कि एक-एक टोपी रोजाना बनाया करते थे, उनमें से एक जो संतोषी था वह तो अपनी टोपी के दो पैसों में से एक पैसा तो खुद खाता था और एक पैसा किसी गरीब को दे देता था। एक रोज दो दिन का भूखा एक आदमी उसके आगे आ खड़ा हुआ उस दर्जी ने जो टोपी तैयार की थी उसके दो पैसे उसके पास आये तो उनमें के एक पैसा उसने उस पास में खड़े गरीब को दे दिया। गरीब ने उस पैसे के चने लेकर खा लिये और पानी पी लिया। अब उसके दिल में विचार आया कि देखों यह दर्जी का लड़का एक टोपी रोज बना लेता है जिससे दो पैसे रोजाना लेकर अपनी जीवन बड़े आनन्द से बिता रहा है। मैं भी ऐसा ही करने लगें तो क्यों भूखा मरूंगा ऐसा सोचकर उसके पास टोपी बनाना सीख गया और फिर अपना गुजर अपने आप करने लगा। उसके दिन अच्छी तरह से कटने लगे।

 

इधर उसी दर्जी का दूसरा लड़का टोपी तैयार कर रोजाना जो दो पैसे कमाता था उनमें से एक पैसा तो खुद खा जाता और एक पैसा रोज बचाकर रखता था उससे चौसठ दिन में उसके पास एक रुपया जुड़ गया। उसने उसे चिट्ठी खेल में लगा दिया। संयोगवश चिट्ठी उसी के नाम से उठ गयी जिससे उसके एक लाख रुपये ही आमद हुई। अब तो उसने सोचा दिन भर परिश्रम करना और दो पैसे रोजाना कमाना इस दर्जी के मनहूस धन्धे में क्या धरा है। छोड़ो इसे और आराम से जीवन बीतने दो। उसके पड़ोस की जमीन में एक गरीब भाई झोंपड़ी बना कर रह रहा था। इसने सरकार से उसे खरीद कर वहां एक सुन्दर कमरा बनाया और अपने बाप-भाई से अलहदा रहने लगा, शराब पीने लगा, वेश्यायें नचाने लगा, अपने आप घमण्ड में चूर होकर औरों को तुच्छ समझने लगा। एक रोज वह अपने भाई दर्जी के पास खड़ा था तो उसे अपनी टोपी के दो पैसों में से एक पैसा किसी गरीब को देते देख कर इसके विचार आया कि देखो इसने अपने दो पैसों में से ही एक पैसा दे दिया किन्तु मेरे पास इतना पैसा होकर भी मैं किसी को कुछ नहीं दे रहा हूं। मुझे भी कुछ तो दान करना चाहिए। इतने में इसके सम्मुख एक मस्टण्डा आ खड़ा हुआ जिसे इसने अपने पाकेट में से निकाल कर पांच असर्फियां दे दीं। उन्हें लेकर वह फूल गया कि देखो आज मेरी बड़ी तकदीर चेती। चलो आज तो शराब पीयेंगे और सिनेमा में चलेंगे। वहां जाते समय रास्ते में किसी की बहू-बेटी से मजाक करने लगा तो पुलिस ने पकड़ लिया और थाने भेज दिया जिससे कि कैद कर लिया गया। ठीक है जैसी कमाई का पैसा होता है वैसे ही रास्ते में लगा करता है और उससे मनुष्य की बुद्धि भी वैसी ही हो जाया करती है।

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