तैराक बना - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू २७
तैराक बना,
बनूँ गोताखोर सो,
अपूर्व दिखे।
भावार्थ-समुद्र के पानी की सतह पर तैरते रहने से रत्नों की प्राप्ति नहीं होती। नीचे गहरे पानी में गोता लगाने से ही वे रत्न मिल सकेंगे जो आज तक तैरने मात्र से नहीं मिल पाये । उसीप्रकार पर पदार्थों का ध्यान करने से कभी भी आत्म तत्त्व की प्राप्ति नहीं हो सकेगी। उस अपूर्व (जो आज तक प्राप्त नहीं हुआ) रत्नत्रय रूप आत्म तत्त्व की प्राप्ति करना है तो आत्मा के ज्ञान दर्शन आदि अनंत गुणों के समुद्र में गोता लगाना ही पड़ेगा ।
हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
आओ करे हायकू स्वाध्याय
- आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं।
- आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं।
- आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं।
लिखिए हमे आपके विचार
- क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं।
- इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
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