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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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परिचित भी - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू १‍८


संयम स्वर्ण महोत्सव

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haiku (18).jpg

 

 

परिचित भी,

अपरिचित लगे,

स्वस्थ्य ध्यान में (बस हो गया)।

 

भावार्थ - आत्मा में स्थित ध्यानस्थ-साधक शुद्ध आत्म रस में निमग्न होता है । उस समय उसकी परम वीतरागी अवस्था होती है । वह राग-द्वेष, अपने-पराये आदि के भेद रूप प्रपञ्च से सर्वथा मुक्त रहता है । अतः उसे परिचित व अपरिचित सभी एक समान प्रतीत होते हैं । 

आर्यिका अकंपमति जी 

 

हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।

 

आओ करे हायकू स्वाध्याय

  • आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं
  • आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं
  • आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं

लिखिए हमे आपके विचार

  • क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं
  • इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?

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