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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

वचन में बल होता है


संयम स्वर्ण महोत्सव

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सुप्रसिद्ध सन्त शिरोमणि दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने अमरकण्टक में वचन – बल का बोध कराते हुए कहा कि अल्प वचन से पर्याप्त प्रभाव उत्पन्न हो जाता है, अधिक शब्द प्रयोग की आवश्यकता नहीं। सत्य वचन में अहिंसा की आराधना समाहित रहती है। वचन ऐसे हों जिससे किसी प्राणी का जीवन न रूके। शब्दों के अनुरूप अंगों – उपांगो की मुद्रा हो जाती है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी ने शब्द, अर्थ और भाव का महत्व बताते हुए कहा कि जिस वचन से हिंसा की संभावना हो वह सत्य वचन नहीं है, सत्य वचन से प्रत्येक प्राणी के जीवन को संरक्षण मिलता है। झूठ दोष से रहित वचन में सत्य की शक्ति निहित होती है। वचन में बल होता है, यह समझाते हुए आपने कहा कि काय बल, वचन बल, मनोबल में सर्वाधिक शक्ति युक्त मनोबल होता है। काय तथा वचन बल सीमित होता है किन्तु मनोबल की कोई सीमा नहीं। मनोबल का प्रयोग अहिंसा की उन्नति के लिए करने से असंख्य लाभान्वित हो जाते हैं।

एक स्थान पर बैठकर ही सूदूर तक प्रभाव पहुँच जाता है। सद्भावना के साथ सदुपयोग के लिए कदम उठाओ, कोई कार्य असंभव नहीं है। बैठे, सोते, करवटें बदलते हुए भी भावों को प्रदर्शित किया जा सकता है। जिस ओर सोचते हैं, उस ओर ही कार्य होता है, सही कार्य के लिए सही सोच आवश्यक है।

एक सूर्य सबको सम्हाल लेता है, यह समझाते हुए आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा कि सूर्य के प्रताप से जग आलोकित होता है। अपने प्रताप से परिचित हो जाइए आलोक व्याप्त हो जाएगा। विचारों का सामंजस्य आज भी उपयोगी है, आगामी काल तक प्रभावी रहता है। व्यापक विचार काल की कविता कालजयी होकर युगों – युगों तक कार्य करती है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा कि वचन – भाव के अनुसार ही अंगों – उपांगो की मुद्रा वैसी हो जाती है। क्रोध के वचनों से चेहरा लाल, मुट्ठी मिंच जाती है, शरीर में हलचल मच जाती है, वचन – भाव शान्त हो तो शान्ति व्याप्त हो जाती है, चेहरा कांति मय हो जाता है। अधिक प्रभाव के लिए अधिक शब्द की आवश्यकता नहीं है, अल्प शब्द भी व्यापक प्रभाव उत्पन्न कर देते हैं। वचन का उद्देश्य सही होने पर पुण्य बंध होता है। घाव को ठीक करने के लिए पहले साफ करते हैं, फिर मरहम लगाकर पट्टी बांधते हैं, ऐसे ही दर्षन के क्षेत्र में पूर्व कर्म साफ (निर्जरा) करते हैं, इसके पष्चात पुण्य का बंध होता है।

पाप – पुण्य रहित होकर जीवन का घाव भर जाता है, सीधा मार्ग मिल जाता है। देष प्रान्त – राज्य को जनपद कहते हैं, जनपद की भाषा होती है। लोक विरूद्ध कार्य नहीं करना चाहिए। द्रव्य, क्षेत्र, काल देखकर वचन मुख से बोलना चाहिए। जहां अहिंसा दया का पालन होगा वहां असुरक्षा की संभावना समाप्त हो जाती है। एक व्यक्ति के वचन से असंख्य व्यक्ति प्रभावित हो जाते हैं। वचन की स्थापना से धारणा एवं बिम्ब की स्थापना से अवधारणा बनती है। एकलव्य को द्रोणाचार्य के वचन नहीं मिले किन्तु बिम्ब से प्रषिक्षित दीक्षित पारंगत होकर अर्जुन से अधिक कुषल हो गया।

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