गुणालय में - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू १३
गुणालय में,
एकाध दोष कभी,
तिल सा लगे।
भावार्थ-तिल बेदाग होता है। गोरा मुख है और एक गाल पर काला तिल है तो वह सुन्दर नहीं लगता । उसीप्रकार गुणों का खजाना भरा है परन्तु द्वेष भाव विद्यमान है तो वह सर्वांग सुन्दर शरीर में तिल के समान है। श्रामण्य में थोड़ा-सा दोष क्षम्य है लेकिन भूमिका के अनुरूप उसका भी उन्मूलन होना चाहिए ।
हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
आओ करे हायकू स्वाध्याय
- आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं।
- आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं।
- आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं।
लिखिए हमे आपके विचार
- क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं।
- इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
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