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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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साधु वृक्ष है - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू १‍२


संयम स्वर्ण महोत्सव

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haiku (12).jpg

 

साधु वृक्ष है,

छाया फल प्रदाता,

जो धूप खाता।

 

भावार्थ–साधु फलदार वृक्ष के समान होते हैं। जैसे वृक्ष सर्दी, गर्मी आदि प्रतिकूलताओं को चुपचाप सहकर भी पथिकों को छाया एवं स्वादिष्ट रसीले फल प्रदान करता है । उसीप्रकार साधु आतापनादि योग धारण कर जो धूप पीठ पर सहते हैं, मैं उन वृक्षों की छाया हूँ । व्रतों का पालन करते हुए अंतरंग - बहिरंग अनेक प्रकार के तपों को समता और आनंद के साथ तपता है। ऐसे अनुभाग के साथ तप करते हुए ऐसा आभा मण्डल निर्मित होता है, जो उसका रक्षा कवच होता है। ऐसा साधु भव्य जीवों को वात्सल्य रूपी छाया और दुःखहारी उत्तम शिक्षा के साथ उभयलोक सुखकारी संस्कार फल के रूप में प्रदान करता है 

आर्यिका अकंपमति जी 

 

हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।

 

आओ करे हायकू स्वाध्याय

  • आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं।
  • आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं।
  • आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं।

लिखिए हमे आपके विचार

  • क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं।
  • इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?

4 Comments


Recommended Comments

On 25/09/2017 at 4:54 PM, Nisheeth Jain said:

सार गभित

 

 

On 25/09/2017 at 4:54 PM, Nisheeth Jain said:

सार गभित

 

 

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जिसप्रकार तपती हुई धूप मे वृक्ष की छाया आनंद देती है,शीतलता प्रदान करती है.उसीतरह साधू भी इस दुःखमयी जीवनमे अपनी वाणी से, सुख और दुःख मे समता रखनेका उपदेश देते है.दुःखी मनुष्य के लिये वो वृक्ष जैसा काम करते है.दुःख से तरने का उपाय बताते है.उनके सान्निध्य मे बस सुख का ही अहसास होता है.साधू स्वयं चारित्ररुपी आग्निमे तपकर, भक्तोःको सुख की छा़व प्रदान करते है.शाश्वत सुखी होनेका मार्ग बताते है.मोक्ष का मुक्ति का रास्ता दिखाते है.

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वृक्ष साधारण भाषा मे हम वृक्षों को छाया , फल और औषधी प्रदाता मानते है। धर्म की दृष्टि से ये स्थावर एक इन्द्री जीव हैं।सात तत्वों में विपरीत श्रद्धान और असंयमित जीवन ही इस पर्याय का कारण बनती हैं। इससे विपरीत साधु जीवन सात तत्वों में दृढ़ श्रद्धान और संयमित जीवन के कारण मिलता है। परंतु उदाहरण के तौर पर जैसे वृक्ष एक स्थान पर स्थिर रहते हुए अनुकूल,प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपना परोपकारी स्वभाव नही छोड़ते अपनी शरण मे आये सभी पथिक को समान छाया और फल प्रदान करते हैं ठीक उसी प्रकार साधु भी अपने ज्ञान को समान रूप से सभी को बांटते हैं

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