धार्मिक अनुष्ठान
पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि धार्मिक अनुष्ठान के लिए द्रव्य काल के साथ साथ क्षेत्र भी अपेक्षित है। निंद्रा के समय सम्यकदर्शन की प्राप्ति नहीं हो सकती हाँ सम्यक दर्शन के बाद निंद्रा अवश्य आ सकती है। निंद्रा के समय हम बुद्धिपूर्वक किसी पर पदार्थ को पहचान नहीं पाते । इसलिए हमारा प्रयास बिफल हो जाता है । जितनी निंद्रा आवश्यक है उतनी ही लेना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जब दिनकर यानि सूर्य का आभाव हो तो भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए क्योंकि पाचन सम्भव नहीं होता और शाम को भोजन भी हल्का लेना चाहिए। भोजन गरिष्ट होगा तो निंद्रा ज्यादा आएगी और फिर साधना नहीं हो सकती। पशु पक्षी भी रात में नहीं खाते केवल रात में जुगाली करते हैं और भोजन को सप्त तत्व में बदल देते हैं और दिन में भोजन करने बाले पशु मनुष्य से अधिक शक्तिशाली होते हैं।
उन्होंने कहा कि साधक की सामायिक में यदि जाग्रति नहीं है तो व्रतों का संसोधन नहीं हो पायेगा। व्रतों में निर्दोषी करण होना चाहिए उसी से कर्मों की निर्जरा होती है।
उन्होंने आगे कहा कि सामायिक तभी संभव है जब आप मन रुपी घोड़े पर लगाम लगा सको क्योंकि मन सरपट दौड़ता है जिसे नियंत्रित करने के लिए विशेष प्रकार के तप की आवश्यकता होती है।
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