वैराग्य का मर्म
पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि वैराग्य का मर्म समझने के लिए अध्यात्म को समझना होगा। आपके बच्चे अभी पारंगत नहीं है फिर भी आप उस पर ऐंसा बोझ डाल रहे हो जो धनुपार्जन की भागदौड़ की सिवाय कुछ नहीं है। उसमें धर्म के संस्कार नहीं डाल रहे हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी यही चला आ रहा है। आज आने बाली पीढ़ी को संस्कारों का रोपण जरूरी है। ये संस्कार आपको ही देना होगा। मैं ऐंसा चिकित्सक हूँ जो आपकी नाड़ी देखकर आपको सही इलाज बता सकता हूँ। आप युवा पीढ़ी के सही चिकित्सक बनो,उसे सही प्रक्षिक्षण दो,उसे अच्छे बुरे का भेद ज्ञान कराओ। युवाओं को पहले नागरिक बनाओ फिर जिम्मेदारी का बोझ कन्धों पर डालो। बौद्धिक ज्ञान के साथ आध्यायत्मिक ज्ञान भी जरूरी है। सर्वांगीण और क्रमिक विकास होना जरूरी है बेहतर भविष्य के लिए। बोझ डालने के कारण वो देश के बारे में चिंतन नहीं कर सकता है। न तो भारत के अतीत का ज्ञान है न भारत के बर्तमान दशा का ज्ञान है। आप निर्देशक तो बन जाते हो आप उपदेशक और उद्देशक नहीं बन पाते हो। आप युवाओं को जीवन के उद्देश्यों को बारे में चिंतन करना सिखाइये उन्हें भी चिंतन की धारा से जोड़ने का प्रयास कीजिये। अर्थ के पीछे दौड़ने से अनर्थ ही होता है बल्कि युवा को अर्थ नहीं समर्थ होने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि आप दादाजी हैं और नाती को सुखी बनाना चाहते हैं तो अर्थ को परमार्थ के रूप में स्वीकार करने के सूत्र उसे दीजिये। अर्थ,व्यर्थ, और अनर्थ के बारे में किशोर अवस्था से ही प्रशिक्षण देने की जरूरत है धर्म का संरक्षण करना है तो बच्चों में संस्कार का बीजारोपण करना प्रारम्भ कर दो।
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