अभिनय करने वाला ऐंसा अभिनय करता है
पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा कि अभिनय करने वाला ऐंसा अभिनय करता है की वास्तविक लगता है परंतु वो वास्तविक नहीं होता बनाबटी होता है। पूर्व के जो कर्म उदय में आते हैं उनसे बचने के लिए बनाबटी बातें नहीं चलेंगी बल्कि वास्तविकता को जानकार उन कर्मों का सामना किया जा सकता है। प्रत्येक सांस में आपके अतीत का फल वर्तमान में परिणाम के रूप में सामने आता है। साक्षी भाव होकर भी एकाक्षी बनकर जो रहते हैं वो कर्मों के यथार्थ को जान नहीं पाते। रुद्राक्ष में एक आँख को लौकिक पद्धति में दुर्लभ माना जाता है । श्रीफल में भी तीन आँखें होती है एक आँख वाला दुर्लभ होता है।
उन्होंने कहा कि अतीत के अनुभव का पुट होना चाहिए तभी दोनों आँखों से काम सही लिया जा सकता है। जो पदार्थ का वर्तमान में ज्ञान हो रहा है वो अतीत के अनुभव से ही द्रव्य क्षेत्र काल का निमित्त कराता है। आज जो ज्योतिष से जाना जाता है ये निमित्त ज्ञान तो हो सकता है नैमित्तिक ज्ञान नहीं हो सकता है। आप भौतिक पदार्थों से चिपके हुए हो तब तक आगे बढ़ नहीं सकते जब तक पर से पराया पन नहीं आएगा तब तक आप मोक्ष मार्ग पर नहीं बढ़ सकते। वर्तमान के बशीभूत न होकर अपने सूत्रधार की तरफ देखोगे तभी आपके अभिनय से दर्शक प्रभावित होंगे। आपका सूत्रधार आपका अतीत है उस अतीत को जानने के लिए आपको वर्तमान में ज्ञान की धारा के साथ विश्वास पूर्वक बहना होगा। संतोष को छोड़कर बाकी सभी गुणों को धारण करते जा रहे हैं, जब संतोष को धारण कर लेंगे तभी अतीत के गुण आत्मा में प्रकट हो सकेंगे। संतोष से ही पुण्य का कोष बढ़ता है।
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