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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

मूक माटी संगोष्टी


संयम स्वर्ण महोत्सव

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गुरुवर ने कहा की  आप लोग बकताओं को एकाग्रता से सुन रहे थे में भी एक एक श्रोता बनकर सुन रहा था । मंथन में ही जो देखते हैं वो गायब हो जाता है जो नहीं दिखता बो उभर कर सामने आता है । भावों की कोई भाषा नहीं होती है बो तो तैरते हुए ही दिखाई देते हैं । अपने भावों की तरंगें व्यक्त करते रहना चाइये |

 

गुरुवर ने कहा कि कल प्रधानमंत्री जी आये थे तो भारत की बात हुई। कोई कितना भी बड़ा कलाकार हो यदि पूर्ण निष्ठां से कला की अभिव्यक्ति नहीं करेगा तो सार्थकता दिखाई नहीं देगी। भाषा में उलझकर कभी कभी भाव पिछड़ जाते हैं । केंद्र बिंदु की स्थापना करके एक रेखा खींची जाती है तो चारों तरफ हरेक दिशा में केंद्र को छूतेहुए तभी चतुर्भुज बनता है। केंद्र से विचलित न हों तो सम्पूर्ण व्यास परिलक्षित होता है । द्रष्टीकोण से ही व्यवहार में सरलता आती है। जीवन को सम्पूर्ण बनाना चाहते हो तो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से ऊपर उठकर केंद्र तक दृष्टि जाना चाहिए। परिधि में सूर्य का बिम्ब तभी दिखाई देता है जब सभी दिशाओं में एकरूपता होती है । शब्दों से ही उपजती है जीवन की विविध रूपताएं। आज भारत के प्राचीन दृष्टिकोण को समझने और समझाने की जरूरत है। जो वीणा का संगीत होता था आज लुप्त हो गया है । शुभ यानि सरश्वती और लाभ यानि लक्ष्मी ये दोनों एक दुसरे की पर्याय हैं परंतु आज सरश्वती का लॉप करके लक्ष्मी के पीछे दौड़ रहे हैं । सरश्वती को मन्त्र बनाकर ही महामंत्र का रूप दिया जाता है। यंत्र और तंत्र सब बेकार हैं मन्त्र के सामने। पीछे भी देखो मगर पिछलग्गू मत बनो। परदेश की यात्रा छोड़कर अपने देश में लौटने पर ही भारतदेश का नवनिर्माण हो सकता है। लाभ के पीछे दौड़कर भला नहीं हो सकता।अंतरंग की लक्ष्मी को पाना है तो बाहर देखना बंद करो भीतर जाओ और तर जाओ। जैंसे रंग का चश्मा लगाओगे बैंसा ही दृश्य दिखाई देता है। आज अंतरराष्ट्रीय होने की जरूरत नहीं है बल्कि अन्तर में राष्ट्रीय भावनाओं को जाग्रत करने की जरूरत है । मंथन से चिंतन उपजता है और फिर नवनीत की तरह मुलायम परिणाम निकलते हैं । प्राचीन भारत की संस्कृति का मंथन करे तभी शुभ परिणाम दिखाई देंगे । विदेशी संस्कृति से भारत की प्रतिभाओं का दोहन हो रहा है ,हमारी संस्कृति का ज्ञान कराने पर ही प्रतिभाएं उभर कर आएँगी ।

 

आचार्य महाराज ने जो कहा वो शत प्रतिशत सत्य है क्योंकि मूक-माटी वेद है, पुराण है, बाइबिल है, कुरआन है, आत्मा का सार है, इसमें समाया सम्पूर्ण संसार है, ये पुदगल की व्यथा है, ये भारत की पौराणिक कथा है, ये नारी शक्ति की आवाज है, इसमें छिपे इतिहास के राज है, इसमें पद दलिता का मर्म है, ये चैतन्य का धर्म है, इसमें विज्ञान का सार है, परमाणु का ये विस्तार है, इसमें माटी की सुगंध है, इसमें मनुष्य का अन्तर्द्वन्द है, वीरांगनाओं की है शौर्यगाथा, वीरों का गर्व से उठा माथा, जीवन मूल्य हुआ साकार है, इसमें जिनवाणी का सम्पूर्ण सार है।

 

इस अवसर पर उपस्थित अनेक कुलपतियों का स्वागत आयोजन समिति की और से किया गया । इस अवसर पर सांसद आलोक संजर ने आचार्य श्री को श्रीफल भेंट कर आशीष ग्रहण किया।उन्होंने कहा कि भारतीय साहित्य में हिंदी का योगदान सर्वोच्च है क्योंकि हिंदी में भावों की स्पष्टता दिखाई देती है। मूक माटी एक ऐंसा महाकाव्य है जिसमें जीवन का यथार्थ है। इस अवसर पर पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय उज्जैन पूर्व कुलपति मिथिला प्रसाद जी ने कहा की माटी तो मूक थी परंतु गुरुवर की कलम ने उसे शब्दातीत बना दिया है। श्री प्रसाद जी ने एक कविता के माध्यम से सम्पूर्ण मूक माटी को अपने विचारों के माध्यम से सशक्त ढंग से प्रस्तुत किया ।  प्रमुख सचिव संस्कृति, वाणिज्य, पुरातत्व मनोज श्रीवास्तव ने गुरुवर का आशीष प्राप्त किया। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ हस्तीमल जैन ने कहा की पीड़ा भी आनंद का विषय होता है जब उसमें से कुछ अनूठा निकलता है ,गुरुवर ने माटी में से अमृत निचोड़ा है । श्री मनोज श्रीवास्तव ने कहा की जितनी रचनाधर्मिता गुरुवर की कलम में है भारतीय साहित्य समाज में विरला ही है। आजकल अनेक गुरु सर्जन की वजाय अर्जन में लगे हैं परंतु केवल्य के मार्ग को प्रशस्त करने वाले गुरुवर ने साहित्य का जो सर्जन किया है वो अंतरंग के निर्माल्य का परिणाम है । इस महाकाव्य के तारतम्य में स्पष्ट है माटी को अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है और उसमें स्वर्ण मयि निखार आ जाता है। आतंकवाद के बारे में लिखी पंक्तिआं ऐंसी लगती हैं मानो अभी 29 सितम्बर के सन्दर्भ में 1988 में ही लिख दिया हो, ये उनकी दूरदर्शिता का परिचायक है । जिसका जीवन कविता हो गया हो उसकी कविता तो जीवनदायनी हो ही जायेगी।

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