सत्य है कटु है सुनने में अच्छा नहीं लगता
आचार्य श्री ने कहा कि सत्य है कटु है सुनने में अच्छा न।हीं लगता, आँखें सत्य को देखना नहीं चाहती परंतु उसे सुनना, देखना और सहन करना पड़ता है ये सत्य है। पाठ्यक्रम को सरसरी निगाह से नहीं देख पाते परंतु उसका चिंतन करना पड़ता है। आज को प्रवचन में उद्घठित हो रहा है बो पुराना है परंतु बार बार सुनने में अच्छा लगता है। इस कथा के माध्यम से ये बता रहा हूँ जब तूफ़ान आता है तो बृक्ष के पत्ते, डाली, फल सभी टूट कर गिर जाते हैं परंतु तना मजबूत होता है वो टिका रहता है। पाठ्यक्रम में जो आया है उसे स्वीकार करना पड़ता है। ये वशुन्धरा रोमांचित हो जाती है महान समर्पित व्यक्तित्व की अतीत की घटना को जानकर मृत्युंजयी और कालजयी होती है। महापुरुषों की जीवन गाथा जो भुलाये नहीं भूली जाती। आज के विद्यार्थी कमजोर इसलिए हो रहे हैं क्योंकि वो ऐंसे पाठ्यक्रम से दूर हो रहे हैं। धरती काँप जाती है, मौसम रंग बदलने लग जाता जब किसी तूफ़ान की बारिश की आहट सुनाई देती है, धरती में भी दरार पड जाती है। जब पुराण पुरुष हो या उसकी पत्नी हो बो पुरुषार्थ उससे भी जुड़ा होता है, वो भी इतिहास की महानायिका होती है। जब भाषा समझ नहीं आती चित्रों से भाव को पकड़ लिया जाता है ये ही भारतीय संस्कृति है। जब गलतियों पर गलतियां होती जाएंगी तब ही स्वीकारने की क्रिया होती है और जो स्वीकारता है बही जीवन को सुधारता है। इस भारत भूमि पर मुस्लिम शासिका ने अपने सर पर पुराण ग्रन्थ को उठाया है क्योंकि यही संस्कृति की ताकत है। इस भारत में राजा की आज्ञा का प्रतिकार नहीं किया जाता भले ही उसकी रानी हो उसे भी स्वीकार करना पड़ता है। भारत की प्राचीन विधियों का नया रूप देकर विदेशों में नए नए प्रयोग किये जा रहे हैं जिसे दुनिया स्वीकार कर रही है।
उन्होंने कहा कि क्षत्रिय राजा क्षत्राणी को आज्ञा देता है किसी नोकरानी को नहीं देता। हम पुराण को पढ़कर और समझकर ही भारतीय संस्कृति को जान सकते हैं, बड़े बड़े लेखकों ने इन इतिहास की सत्य घटनाओं को बड़े ही तरीके से संजोया है, संवारा है जिसमें भावों की अभिव्यक्ति परिलक्षित होती है। जिस तरह देवताओं की आँखों में भी इतिहास की उस घटना को देखकर आँसृ की धारा बह निकली हो वह दृश्य कैंसा होगा। सहज रूप से कुंड के सामने स्थान बनाया गया था उस स्त्री को ये अग्नि परीक्षा देनी थी, कूदना था उस अग्निकुंड में जिसमें भीषण लपटें उठ रही थीं और बो सती भी परीक्षा देने तत्पर थी। मर्यादा पुरषोत्तम भी परीक्षा लेने अडिग थे क्योंकि वो राजधर्म की मर्यादा से बंधे थे।
गुरुवर ने कहा कि प्रश्न चिन्ह लगाया जाता है उसका उत्तर सही तभी दे सकते हो जब प्रश्न के भाव को समझा जाओ। जब सीता तत्पर हो गई अग्नि में कूदने को तो लोग जल देवता की तरफ टकटकी लगाकर देखने लगे।
गुरुवर ने कहा कि जिसके भीतर आत्मविश्वास होता है बो परीक्षा से भयभीत नहीं होता है। इसलिए सीता कूद पड़ी और चमत्कार हो गया अग्नि लुप्त हो गई, कमलासन प्रकट हुआ सीता उस पर जा बैठी। जल और अग्नि का चोली दामन का साथ होता है, जब बिजली अग्नि के रूप में कड़कती है तब ही बारिश होती है। इस दृश्य को देखकर सभी उपस्थित लोग जय जय कार करने लगे।
गुरुवर ने कहा कि इसी प्रकार आज के विद्यार्थी आत्मविश्वास के साथ परीक्षा दें, श्रम और पुरुषार्थ को प्राथमिकता दें। खोदने का पुरुषार्थ करें तो सुखी धरती में से भी जल की धारा बह सकती है। सीता की इस परीक्षा को देखकर सबकी आँखों में पानी आ गया। सीता की परीक्षा तो हो गई अब राम की परीक्षा का समय आ गया था।
उन्होंने कहा कि जीवन, तत्व, नश्वर क्या है, तेरा क्या है मेरा क्या है इससे बाहर निकलो और नए दिन जो आने बाले हैं जो अच्छे दिन आने बाले हैं उनकी तरफ देखो। सीता ने मौन धारण कर लिया तो राम के माथे पर चिंता की लकीर आ गई क्योंकि बो राजधानी की तरफ नहीं वन की तरफ चल दी। सीता आगे आगे चली और राम पीछे पीछे चले। लोकतंत्र में यदि कर्तव्यों से विमुख हो रहे हैं तो व्यवस्था में सुधार नहीं हो सकता। सीता ने अपने कर्तव्य का पालन किया और आर्यिका प्रथ्वीमति माताजी की शरण में जाकर अपने जीवन को भव्यता प्रदान करने के मार्ग पर आरूढ़ हो गई। आप भी सभी कर्तव्यों का पालन तभी कर पाएंगे जब पुराण से कुछ सबक लेंगे।
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