अहिंसा दिवस एवं वाणी महोस्तव
आचार्य श्री ने कहा की महावीर जयंती पर इस मैदान में प्रवचन हुआ था । सूर्य देवता भी कहीं छुपे हुए हैं । धरती का नाम क्षमा है ,कीट पतंगे , नदी नाले सभी इस धरती की गोदी में विचरण करते हैं । स्वर्ग से अच्छी धरती है ये भारत की धरती । अहिंसा को प्रणाम करने से अहिंसा का पालन नहीं होता । अहिंसा एक निषेधात्मक शब्द है । हिंशा का निषेध् जहां होता है अहिंसा का प्रादुर्भाव बहिसे होता है । उन्होंने कहा कि भोजन चाहते हो तो आपको अग्नि से पाक हुआ भोजन मिलता है । बिना अग्नि के जीवन का निर्माण नहीं होता । कुम्भकार भी मिटटी के बर्तन को अग्नि के हवाले करता है तो अग्नि देवता प्रज्ज्वलित नहीं होते तब कुम्भ कहता है आप अग्नि से इन्हें जलाओगे नहीं बल्कि इन्हें जिलाओगे । हमें पक्का कर दो मेरा जीवन तभी लोगों को शीतलता प्रदान कर पायेगा । आप संकोच मत करो अग्नि देवता मुझे अपना तेज प्रदान करो । उन्होंने कहा की श्रम के बिना पुरुषार्थ के बिना पुरुष का जीवन भी अधूरा होता है इसलिए मुझे पवित्र पावन बना दो तो में एक मंगलकलस बन जाऊंगा । गुरुवर ने कहा की आप जल की शीतलता से ही घबरा जाते हो और मिटटी का कुम्भ अग्नि के तेज से भी नहीं डरता । धरती की दरारें पानी की बूंदों से से भर्ती हैं और जीवन की दरारें क्षमा से भर्ती हैं । पात्र के बिना पानी टिक नहीं सकता और पात्र के बिना प्राणी टिक नहीं सकता । जब तक निस्वार्थ भाव से कार्य करने बाले करपात्री आगे नहीं आएंगे तब तक ये समाज टिक नहीं सक्टा । मुख्यमंत्री जी को ऐंसा ही करपात्र बनना होगा अपने प्रदेश की प्रजा के लिए तभी प्रदेश बिकसित होगा । उन्होंने कहा की पुरुषार्थ और श्रम के आभाव में दुर्दशा होती है । हमारी क्षमा में श्रमिकपन आना चाहिए । शिक्षा हमेंशा कर्म की होती है जबकि आज शिक्षाकर्मी की शिक्षा चल रही है । भारत की मर्यादा खेतीबाड़ी , साडी , हैं। शिक्षा ऐंसी हो जो भारतीय संस्कृति के आधार पर होना चाहैए परंतु बिना सिंग और पूँछ की शिक्षा चल रही है । बड़े बड़े स्नातक आज बेरोजगार घूम रहे हैं ,अनेक इंजीनियर कर्जे से दबे हुए हैं उन्हें ऋणी बना दिया है । विश्व बैंक के कर्जे से भारत की बैंक भी दब रही हैं । आर्थिक गुलामी के दौर से भारत गुजर रहा है । शिक्षा लेकर अपना अच्छा कर्म करें ,पुरुषार्थ करें । सुभाष चंद्र बॉस ने अपनी माँ को पात्र को लिखा था की माँ मुझे बाबू नहीं बनना बल्कि अपने पैरों पर स्वाभिमान से खड़े होना है । गुरुवर ने कहा की भारत के बिना विश्व भी खड़ा नहीं रह सकता है । क्षमा की जो बिधि बताई है क्षमा उस बिधि से ही होती है । बाबू बनने के चक्कर में कर्म से दूर हो रहे हैं देश के युवा । श्रम रहित समाज गुलामी की मानसिकता का प्रतीक बन जाता है । गुरुवर ने कहा कि किसान आज पूरा कर्म करने के बाद भी दुखी क्यों है इस पर विचार करने की जरूरत है । आज इंडिया की नहीं प्राचीन भारत की कृषि को पुनर्जीवित करने की आवशयकता है । आज श्रमिक का जो शोषण हो रहा है सरकार को उसे रोकने के लिए सार्थक कदम उठाना चाहिये तभीएक अच्छे समाज की कल्पना को सार्थक किया जा सकता है । आजशहर शेयर बाजार के चक्कर में आगे बढ़ रहा है और देश को पीछे कर रहा है । मुख्यमंत्री जी आपको जनता ने विधायक बनाया था इसलिए जनता जो शासक है उसके भले को सोचकर ही आगे कदम बढ़ाएं क्योंकि केंद्र कोई भीजनता केंद्रबिंदु है । चुनाब के समय ही नहीं आचार सहिंता हमेशा के लिए लागु होना चाहिए |
70 साल हो गए आजादी को आज आजादी को परंतु जनता का पक्ष कमजोर हो गया है । आज विदेशी भाषा हावी होती जा रही है अपनी राष्ट्रभाषा को पीछे धकेल दिया है । अंग्रेजी को जान्ने बाले गिनती के हैं परन्तु उसे ही हर काममें इस्तेमाल किया जा रहा है । न्याय के क्षेत्र मेंभी इस भाषा के कारन जनता को परेशानी हो रही है । भारत को अपनी भाषा के प्रति गंभीर होना पडेगा तभी हम सही न्याय कर पाएंगे ।राष्ट्र की सभी स्थानीय भाषाओं का उपयोग अंग्रेजी के स्थान पर होना चाहिए । मध्यप्रदेश हिंदी को मजबूत करने के लिए तत्पर है परंतु सम्पूर्ण भारत में इसके लिए अभियान चलाना चाहिए |
इसी दिन :- जयंत मलैया जी ने अपने उदगार व्यक्त किये । उन्होंने कहा हमारा सौभाग्य है गुरुवर राजधानी में आज गांधी जी और शाश्त्री जी की जयंती पर हमारे निवेदन पर क्षमावाणी में पधारे । इस अवसर पर सुधा मलैया जी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। शिबराज जी ने कहा की हम धन्य हैं जो आचर्य श्री के युग में हमारा जन्म हुआ है । गांधी जी को नहीं देखा परंतु वे गुरुवर से भिन्न नहीं होंगे । जगत के कल्याण के लिए सदमार्ग पर दुनिया को चलाने का कार्य कर रहे हैं और बो सिर्फ जैन के नहीं जन जन के हैं । क्षमा कमजोरों ,कायरों का धर्म नहीं हैं ,क्षमा एक विज्ञान है, वेद है , पुराण है । ये मानव जीवन सफल हो सद्बुद्धि मिलती रहे ,सन्मार्ग पर चलते रहें ये आप जैंसे गुरु से आशीर्वाद मांगते हैं , अनेकान्तवाद की परंपरा हजारों साल से चल रही है जो गुरुवर में परिलक्षित होती है । आदिनाथ भगवान् से महावीर तक की जो परंपरा चली आ रही है जो वसुधैव कुटुम्बकम् को सार्थक करती है । सब अपने लिए जीते हैं परंतु महावीर ने जीव मात्र को जीने की बात कही है । सम्पूर्णता आचार्य श्री में दिखाई देती है जो सबके कल्याण की भावना को लेकर राष्ट्र को जोड़ने का कार्य कर रहे हैं । उन्होंने कहा की जब तक जितनी गाय हैं उतनी गौशालाएं प्रदेश में न खुल जाएँ तब तक में चैन सर नहीं बैठूंगा । नशामुक्त प्रदेश की कल्पना को साकार करना है । क्षणभंगुर शरीर को सार्थक कैंसे बनाएं ये आपसे गुरुदेव रास्ता चाहिए ।
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