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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

आमंत्रण से जाते नहीं


संयम स्वर्ण महोत्सव

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पूज्य गुरुवर ने अपने आशीर्वचन में कहा कि हम आमंत्रण से जाते नहीं परंतु वृक्षों की भांति जो हमेशा खड़े रहते हैं सभी राहगीरों को  छाया, फल, सुगंध,शीतलता, ठंडी बयार आदि देते हैं किसी को आमंत्रण नहीं देते बल्कि राहगीर स्वयं चलकर उनके समक्ष आश्रय लेने जाता है। आत्मा का कल्याण तभी होता है  वृक्ष की भांति दूसरों को छाया के साथ साथ आश्रय प्रदान करने की भावना होती है।

 

उन्होंने कहा कि वीतरागी संत आमंत्रण और निमंत्रण से बहुत दूर रहते हैं। जिस तरह ट्रकों पर पीछे लिखा रहता है कि "फिर मिलेंगे" उसी तरह आप लोग भी संतों से फिर मिलने की भावना बनाए रखिये और आपस में भी सभी से मिलने की भावना बनाए रखिये क्योंकि मैत्री भाव बनाकर रखने से ही कल्याण होता है।

 

आचार्य श्री ने कहा कि वीतरागी संत किसी से बंधते नहीं है बे तो सर्वथा मुक्त होने के लिए ही साधना करते हैं और मुक्ति पथ की और अग्रसर होते हैं आप कभी भी किसी संत को बाँधने का प्रयास न करें उन्हें स्वतंत्र विचरण कर आत्मा की स्वतंत्रता का पर्व मनाने दें।

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