जीव दया
पूज्य आचार्य श्री ने कहा की संकल्प का रूप वडॉ विराट होता है जिससे सभी का कायाकल्प हो जाया करता है । दया का क्षेत्र में कार्य होना चाहिए । दया हमेशा जीवंत रहती है , माया के प्रति राग होता है परंतु दया तो धर्म का मूल होता है । जब दो आँखें दूसरी दो आँखों से मिलती हैं तो दया और करुणा के भाव जागृत होते हैं । कभी भी आवश्यकता से अधिक की अपेक्षा नहीं करना चाहिए जो चाहिए सब पुरुषार्थ से मिलता जायेगा । गौ माता कामधेनु होती है उसको हम दे क्या रहे हैं जबकि लेते ही जा रहे हैं और बो एक माँ की भांति मीठा दूध और अमृत दे रही है । पहले गौ दान की परंपरा होती थी उसको जीवित करने की जरूरत है । सरकार अपना कार्य करती है हमें अपना कार्य करना चाहिए उस पर आश्रित नहीं रहना चाहिए । गौ सेवा के क्षेत्र में भारत की जनता को स्वयं ही आगे आना चाहिए । आप तो धर्म के कार्य को करते जाइये ये जबरदस्त कार्य है परंतु जबरदस्ती का कार्य नहीं है , जो है भगवान् के भरोसे चलता जायेगा , प्रकृति ने कामधेनु को दिया है तो प्रकृति ही उसकी रक्षक है । कामधेनु की कृपा के बदले सिर्फ अपने कर्तव्यों का पालन करना करते जाइये । उन्होंने कहा की दान दाता को तो दान देते समय अहोभाग्य समझना चाहिए की उसका दान दया के क्षेत्र में जा रहा है । जो व्यक्ति अर्जन करता है उसे धन का विसर्जन भी करना चाहिए यही धर्म का सन्देश है । पहले भी भारत में गौ संरक्षण की परंपरा चली आ रही है ,राजाओं के राज्य में भी गौमाता निर्भय होकर घूमती थी आज लोकतंत्र में आप सभी राजा की भांति गौ माता का संरक्षण करो । प्राचीन समय में भारत में गुरुकुल , गौशालाएं चलाई जाती थीं आज भी गुरुकुल की शिक्षा के लिए और गौशालाओं की गाय के संरक्षण के लिए जरूरत है । भारत की कृषि तंत्र को तहस नहस करने का प्रयास हो रहा है , राष्ट्रभाषा के साथ दुर्व्यवहार हो रहा है , संस्कृति को छिन्न भिन्न करने का प्रयास विदेशिओं द्वारा आज भी किया जा रहा है । नेता मात्र का कर्तव्य नहीं है व्यवस्था परिवर्तन में जनता को भी अपने कर्तव्यों के पालन के प्रति गंभीर होना चाहिए । लोकतंत्र मजबूत तभी होगा जब सब सामूहिक रूप से से प्रयास करेंगे । गुरुवर ने कहा की गौ धन राष्ट्र की सबसे बड़ी पूँजी है जबकि हम कामधेनु को छोड़कर यांत्रिक कार्यों को बढ़ाबा दे रहे हैं । गौरस योगी के शुक्ल ध्यान में भी कारगर होता है और आपके द्वारा दिया जाता है योगी को तो आपको पुण्य की प्राप्ति होती है परंतु जब गौ नहीं होगी तो दुघ की धारा कहाँ से लाओगे । चार प्रकार के दान में अभय दान भी श्रेष्ठ माना जाता है इसलिए कम से कम कामधेनु के अभय के लिए तो कुछ अर्थ का त्याग करने का संकल्प लो तभी तुम्हारे दस धर्मों के पालन की उपयोगिता मानी जायेगी । एक बार जो ब्रत ले लिया उसे पूर्ण करने के लिए कमरकस लेना चाहिए ,बीच में छोड़ना नहीं चाहिए । जैंसे हम दाम्पत्य जीवन में वचन लेकर एक दुसरे के प्रति समर्पित रहते हैं बैसे ही कामधेनु के प्रति वचनबद्ध होकर काम करें उसके प्रति समर्पित रहें क्योंकि बो भी आपके प्रति दया का भाव रखकर आपको अपना दूध देती है । बो दुग्ध प्रदान करती है आप उसे संरक्षण प्रदान करो । यदि सम्यक दर्शन के निकट पहुंचना चाहते हो तो दया जो धर्म का मूल है उसे जीवन में उच्च स्थान देना होगा ।
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