Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

तत्वार्थ सूत्र


संयम स्वर्ण महोत्सव

577 views

64 लब्धियां होती हैं और आपके पास छयोपसम्म लब्धि है ।  सम्यक दर्शन ,ज्ञान , चारित्र को प्राप्त करने बाला भव्य होता है और जो इससे वंचित है बो अभव्य है । कर्म के क्षय के उपरांत भी आप रहने बाले हो । भव्य कभी अभव्य नहीं हो सकते और अभव्य कभी भव्य नहीं हो सकते किन्तु अभव्य के पास भव्य होने की क्षमता तो है परंतु अज्ञान दशा के कारण बह भव्यता से वंचित रहता है।  तत्व के आभाव में भी हमारा अस्तित्व रह सकता है कुछ ऐंसे तत्व भाव रहते हैं , उपयोग चैतन्य में होता है , नैमित्तिक सम्बन्ध में हमेशा आत्मा में रहने बाले का नाम उपयोग है । आत्मा उपयोग के बिना नहीं रह सकता। आत्मा का उपयोग दो प्रकार का है दर्शना उपयोग और ज्ञाना उपयोग । दर्शन उपयोग 4 प्रकार का होता है और ज्ञानोपयोग 8 प्रकार का होता है ।। ज्ञान के ऊपर मिथ्यात्व का प्रभाव तो पड़ता है किन्तु दर्शन के ऊपर मिथ्यात्व का कोई प्रभाव नहीं पड़ता । जीव संसारी और मुक्त दो प्रकार के हैं , हम सभी संसारी जीव हैं , संसारी जीव मन बाले भी हैं और बिना मन बाले भी हैं , समनत्व और अमनत्व दो प्रकार के संसारी जीव हैं ।

 

पृथ्वी कायिक और जलकायिक जीव होते हैं , अग्निकायिक जीव होते हैं ,वायु कायिक और वनस्पति कायिक जीव होते हैं । पाँच इंद्रियां होती हैं ज्यादा नहीं होती । पंचेन्द्रिय जीव दो प्रकार के होते हैं मन सहित और मन रहित। छयोप्सम्म की क्षमता को लब्धि कहते हैं और लब्धि का प्रयोग करना उपयोग कहलाता है । सारे पंचिन्द्रिय जीवों में 28 मूलगुण होते हैं परंतु ज्ञान दर्शन के आभाव में सब इन्हें उपयोग में नहीं ला पाते । वनस्पति जीवों में मात्र एक ही इन्द्रिय होती है । प्रथम स्पर्श इन्द्रिय होती है । दूसरी रस इन्द्रिय ,तीसरी गंध यानि घ्राण इन्द्रिय, चौथी चक्क्षु इन्द्रिय और पांचवी इन्द्रिय मनुष्य आदि जीवों में होती है ज्ञान इन्द्रिय । देय और उपादेय का भान होता है बो संघीय पंचिन्द्रिय है , मोक्ष मार्ग में प्रवेश के लिए संघीय होना अति आवश्यक है । संघीय 12 बे गुणस्थान तक रहता है 13 बे में संघी और असंघी का भेद समाप्त हो जाता है। मन दो प्रकार से चलता है  एक योगात्मक और एक उपयोगात्मक चलता है । संघीय पंच इन्द्रिय के पास जो मन है बो उपयोगात्मक है इसलिए बो शुधोपयोग के द्वारा मति ज्ञान , श्रुत ज्ञान , अबधि ज्ञान और मनः प्राय ज्ञान के माध्यम से 14 बे गुण स्थान तक पहुँच कर मुक्त जीवों की श्रेणी में पहुच जाता है।

 

केवली भगवन न संघी हैं न असंघी हैं। कर्मयोग भीतर से होता है उसी माध्यम से बहा पहुंचा जा सकता है । कर्मों का संपादन होता है तभी आत्मोपलब्धि होती है। सभी लब्धिओं को उपलब्धि में परिवर्तित तभी किया जा सकता है जब ज्ञान को सही दिशा में मोड़ा जाय । ऐंसा नहीं है केवल मनुष्य ही मुक्त जीव बना हो घोड़े के मुख बाले और अन्य पंचिन्द्रिय जीव भी मोक्ष गए हैं । कर्म के उदय से अलग अलग प्रकार के शरीर प्राप्त होते हैं हलके ,भारी , मोटे , पतले । मनुष्य का शरीर लब्धिओं की वजह से सम्पूर्ण क्षमताओं से परिपूर्ण होता है और ज्ञान का सदुपयोग उसे सार्थक दिशा की और बढ़ने की प्रेरणा देता है जिससे बो आगे भाड़ सकता है।

0 Comments


Recommended Comments

There are no comments to display.

Create an account or sign in to comment

You need to be a member in order to leave a comment

Create an account

Sign up for a new account in our community. It's easy!

Register a new account

Sign in

Already have an account? Sign in here.

Sign In Now
  • बने सदस्य वेबसाइट के

    इस वेबसाइट के निशुल्क सदस्य आप गूगल, फेसबुक से लॉग इन कर बन सकते हैं 

    आचार्य श्री विद्यासागर मोबाइल एप्प डाउनलोड करें |

    डाउनलोड करने ले लिए यह लिंक खोले https://vidyasagar.guru/app/ 

     

     

×
×
  • Create New...