वस्तु को प्राप्त करने के लिए भूमिका बनाई जाती है
पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने प्रवचनों में कहा की जिस वस्तु को प्राप्त करना है उस वस्तु को प्राप्त करने के लिए भूमिका बनाई जाती है। जैंसे आप लोगों को घी प्राप्त करना है और घी से आप अपरिचित हैं तो फिर उसका स्रोत्र खोजने का प्रयास करेंगे तब आपको उसकी जानकारी लगेगी। स्रोत पर आप पूरा विश्वास करेंगे तो उससे घी प्राप्त कर लेंगे, दूध स्रोत है और उस पर श्रद्धान करेंगे तो अवश्य घी प्राप्त कर पाएंगे।
ऐंसे ही मोक्ष मार्ग का स्रोत मनुष्य पर्याय है और वीतरागी धर्म है जिस पर श्रद्धान करके ही इस पर आगे बढ़ा जा सकता है। श्रद्धान करने पर ही आनंद की अनुभूति होती है और आनंद की अनुभूति होने के बाद प्रक्रिया से गुजरने की आवश्यकता है । जो वस्तु आपको प्रिय है उसे प्राप्त करने के लिए आपको आगे आना पड़ेगा और उसे पाने के लिए ये जानना जरूरी है की कहाँ से उस कार्य को प्रारम्भ करना है फिर उसे प्रारम्भ करें, जब हम चलकर उस तक पहुंचेंगे तब हमें उसकी अनुभूति होगी
उन्होंने कहा की दूध से घी बनने की प्रक्रिया के बाद घी में दूध दिखाई नहीं देता और 10 किलो दूध से मात्र 1 किलो घी की प्राप्ति होती है ,ऐंसे ही आप स्वाध्याय तो कर रहे हो परंतु दूध की तरह मंथन नहीं कर पा रहे हो। श्रद्धान के साथ अनुभूति भी आवश्यक है जब तक अनुभव नहीं होगा तब तक बो प्राप्त नहीं कर पाओगे जो प्राप्त करना चाहते हो। श्रद्धान में जब अनुभूति की ओर कदम बढ़ने लग जाते हैं तो आनंद का स्वाद आने लग जाता है।
आचार्यश्री कहते हैं कोई भी बात श्रद्धान के पक्ष को लेकर करना चाहिए । श्रद्धान अतीत , वर्तमान और भविष्य तीनों का होता है परंतु अनुभूति तो तात्कालिक होती है, जो घर में बैठे बैठे वीतरागिता की अनुभूति कर रहे हैं उनसे ये कहना है अपनी धारणा को बदल लें क्योंकि धारणा जब वीतरागी भावों की बनेगी श्रद्धान मजबूत होगा और श्रद्धान मजबूत होगा तो सम्यक्त्व की प्राप्ति होगी और अनेकों लोग आपके साथ हो जाएंगे।
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